सफल मौनपालन (मधुमक्खी पालक) के लिए मौनवंशों का वार्षिक प्रबंधन एक अति आवश्यक काम है. मौसम के अनुसार मौन प्रबंधन को मुख्यत: 3 प्रमुख भागों में बांटा गया है, जैसे बरसात, जाड़ा और गरमी. विभिन्न स्थानों पर इन मौसमों के लिए मौनवंशों का प्रबंधन व रखरखाव भी अलगअलग होता है. वार्षिक प्रबंधन में हम कम मेहनत से ही ज्यादा से मुनाफा कमा सकते?हैं. इस में हमें हर मौसम में कुशलता व दक्षता से काम करना चाहिए. भारत जैसे भौगोलिक व विषम हालात वाले देश में हर जगह मौनवंशों का वार्षिक प्रबंधन एक सा नहीं होता. यहां तक कि मैदानी व पहाड़ी इलाकों में भी यह अलगअलग होता है. बरसात में मौनपेटी का निरीक्षण करना एक मुश्किल काम है, इसलिए बरसात के मौसम के खत्म होने के बाद पहाड़ी और मैदानी इलाकों के मौनपालकों को मौनवंशों का निरीक्षण करना चाहिए. साथ ही, निरीक्षण का सही समय वह होता है, जब दिन में आसमान में बादल न छाए हों और अच्छी धूप खिली हो. निरीक्षण से मौनवंशों की स्थिति का सही अंदाजा होता?है.
बरसात के मौसम में मौनवंशों में मोमिया कीट लगने का खतरा ज्यादा रहता है. यदि मोमिया कीट का प्रकोप हो तो उस छत्ते को हटा कर नया छत्ता या पहले से तैयार व संरक्षित छत्ता मौनवंश को देना चाहिए. मौनपेटियों में समुचित शहद की मात्रा होनी चाहिए. खाद्य पदार्थ कम होने पर मौनवंश मौनपेटी को छोड़ कर दूसरी जगह पर चला जाता है. मौनपालकों को इस से काफी नुकसान उठाना पड़ता है. पहाड़ी इलाकों में अक्तूबर महीने में शहद का एक बार फिर से निष्कासन होता है. इस समय मौनवंश इतना शक्तिशाली होना चाहिए कि मौनपालक ज्यादा से ज्यादा शहद हासिल कर सकें.
जो शहद इस समय प्राप्त होता है, उसे पहाड़ी इलाकों के लोग ‘कार्तिकी शहद’ के नाम से जानते हैं. जो मौनपालक मौनवंशों को मौनपेटी में न पाल कर घर के जालों में पालते हैं, उन में नुकसान होने का डर ज्यादा होता है. शहद को निकालने के लिए पहाड़ी इलाकों में मौनपालक दिन में जाले का पटला, जो घर के अंदर होता है, को निकालते हैं. उस के बाद धुआं दे कर मौनवंशों को छत्तों से अलग किया जाता है. इस के बाद छत्तों को काट कर शहद का निष्कासन किया जाता है. इस प्रक्रिया में काफी मौनों की मौत हो जाती है व मौनवंश इस से काफी परेशान हो जाता है. ऐसा करने से कभीकभी रानी की भी मौत हो जाती है, जिस से मौनवंश खत्म हो जाता है. सब से बड़ा नुकसान यह होता है कि शहद के निष्कासन के बाद जालों में भोजन की कमी होने के चलते मौनवंश जालों को छोड़ कर हमेशा के लिए चला जाता है, क्योंकि इस के बाद सर्दी का मौसम आता है, जिस में वातावरण का तापमान कम हो जाता है व भोजन की काफी कमी हो जाती है.
छत्तों को काटने के बाद मौनपालक उस में शहद का निष्कासन कपड़े पर निचोड़ कर करते हैं. निचोड़ने से शहद के साथसाथ छोटे शिशु भी कुचल कर शहद में आ जाते हैं, जिस से शहद की क्वालिटी पर काफी प्रभाव पड़ता है. पहाड़ी इलाकों के मौनपालक यदि मौनवंशों को जाले में ही रखना चाहते हैं, तो वैज्ञानिक तरीके से जालों में ही मौनपेटी रख कर यह काम आसानी से किया जा सकता है. इस से उन्हें नुकसान भी नहीं उठाना पड़ेगा. पहाड़ी इलाकों के मौनपालकों में कुछ भ्रांतियां हैं कि कार्तिकी शहद बहुत अच्छी क्वालिटी का होता है. कुछ हद तक यह बात इसलिए ठीक है, क्योंकि जो शहद प्राप्त होता है, उस में औषधीय पौधों के मकरंद का गुण होता है. जाड़ों में यह शहद घी के समान जम जाता है. यह शहद के गुण पर निर्भर करता है.
जिस शहद में ग्लूकोज की मात्रा फ्रक्टोज से ज्यादा होती है, उस शहद में जमने की कूवत ज्यादा होती है. वैज्ञानिक नजरिए से यह अच्छा गुण नहीं माना जाता है, क्योंकि कुछ समय बाद इस में सड़न की गंध आना शुरू हो जाती?है और शहद खराब हो जाता है. इस वजह से मौनपालक ऐसे शहद को पतले मुंह वाली बोतलों में संरक्षित करते हैं, जो जमने के बाद निकालना मुश्किल हो जाता है. शहद का निष्कासन के बाद उसे स्टील के भगोने में रखें. इस के बाद एक और भगोना, जो उस से बड़ा हो, में थोड़ा सा पानी रख कर शहद वाले भगोने को उस में रख कर उसे उबालते रहें. यह काम तब तक करें, जब तक गरम पानी से भगोने में रखा शहद गरम न हो जाए. इस काम को तकरीबन आधे से एक घंटे तक धीमी आंच पर करने से शहद सुरक्षित रहता है और जमता भी नहीं है. ठंडा होने पर उसे चौड़े मुंह की कांच की शीशी में भर कर सुरक्षित रखा जा सकता है. पहाड़ी इलाकों में मौनपालन तभी सफल हो सकता है, जब उसे वैज्ञानिक विधि द्वारा किया जाए. मौनपालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिस में कम लागत से ही ज्यादा मुनाफा हासिल किया जा सकता है.
पहाड़ी इलाकों में नवंबर महीने के बाद ही वातावरण ठंडा होना शुरू हो जाता है. इस मौसम में ज्यादा ठंड होने के कारण मौनवंश को भी काम करने में मुश्किल होती है. मधुमक्खी सिर्फ उस समय ही मौनपेटी से बाहर निकलती हैं, जब वातावरण काफी गरम हो जाता है. पर ऐसे समय भोजन की भी कमी होती?है, इसलिए मौनवंश ने जो शहद इकट्ठा किया है, उसे ही धीरेधीरे खाना शुरू करती हैं व अपने वंश को ठंड से सुरक्षित रखती हैं. साथ ही, मौनवंश को मौनपेटी के अंदर का भी सही तापमान बनाए रखना जरूरी होता है, इसलिए यदि भोजन नहीं होगा तो मौनवंश मौनपेटी को छोड़ कर कहीं और चला जाएगा. इस समय मौनवंश को शाम के 3-4 बजे के बीच चीनी का एक घोल दिया जाना चाहिए, जिस में चीनी और पानी की मात्रा का अनुपात 2:1 हो. अगर मौनपालकों ने मौनवंश को मौनपेटी में रखा है, तो चीनी का घोल सभी मौनवंशों की मौनपेटी के अंदर देना चाहिए. यह काम 7-8 दिन बाद फिर से दोहराया जाना चाहिए. सफल मौनपालन के लिए यदि मुमकिन हो तो मौनवंशों का मैदानी क्षेत्रों में ट्रांसफर करना बहुत फायदेमंद होता है. यहां पर जिन मौनपेटियों में मौनों की संख्या कम हो तो कम संख्या की 2 मौनवंशों को आपस में मिला दिया जाए, जिस से मौनवंश ताकतवर हो जाएं.
मौनवंशों को आपस में मिलाने के लिए अखबार विधि का उपयोग करना चाहिए. इस विधि में एक मौनवंश से रानी को निकाल देना चाहिए. अब उस मौनपेटी, जिस में रानी हो, को रानीविहीन मौनपेटी के ऊपर रखना चाहिए. इस काम को करते समय एक अखबार में जो कि सूई से पूरी तरह छिद्रित हो व इस के दोनों तरफ शहद का लेप हो, को दोनों मौनपेटियों के बीच रखना चाहिए. दोनों मौनपेटियों के मौनवंश उस शहद को दोनों तरफ से खाना शुरू करते हैं और उन की गंध आपस में मिल जाती है. दूसरे दिन जब आप मौनपेटी को खोलते हैं तो मौनवंश अखबार को कुतर कर आपस में मिल जाते हैं और मौनवंश ताकतवर हो जाता है. मैदानी इलाकों में वे मौनपालक, जो यूरोपीय मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा) का पालन कर रहे हैं, इस समय शहद इकट्ठा करने के लिए अपने मौनवंशों को तैयार करें. इस के लिए सब से पहले अपने मौनवंश को ताकतवर बनाना होगा, जिस से कि मधुमक्खियां ज्यादा से ज्यादा शहद इकट्ठा कर सकें. उन जगहों की पहले से ही तलाशी शुरू कर दें जहां पर आप को इस मौसम में सरसों, तोरिया, लाही व सूरजमुखी से शहद प्राप्त हो सके. इन फसलों के 2 फायदे हैं.
पहला, इन फसलों से पराग व मकरंद दोनों मिलता?है. पराग से मौनवंश जल्दी बढ़ता है. पराग के आने से रानी छत्तों में अंडा देना शुरू करती?है, जिस से नए मौन तैयार होते?हैं व मौनवंश ताकतवर हो जाता?है. मौनवंश जितना ताकतवर होगा, उतना ही शहद मिलेगा. मकरंद के आते ही मौनवंश के शिशु प्रकोष्ठ के ऊपर मधु प्रकोष्ठ देना चाहिए. इस में पिछले सालों के बने छत्तों का उपयोग करना चाहिए. ऐसा करने से मौनवंश जल्दी ही शहद भरना शुरू कर देते हैं. यदि आप के पास पुराने छत्ते नहीं हों, तो नए फ्रेम में पूरी मोमिया पाटी शिशु कक्ष में देने से मौनवंश जल्दी ही उस पर नया छत्ता बना देता है. उस के बाद उसे निकाल कर मधु प्रकोष्ठ में रखने से मौनवंश उस पर शहद भर देता है. 8-10 दिन बाद निरीक्षण कर शहद का पहला निष्कासन उस समय करना चाहिए, जब फ्रेम के आधे कोष्ठ पतले मोम की परत से बंद हो व आधे खुले हों व उन पर शहद बाहर से ही दिख रहा हो. ऐसा करने से मौनवंश दोबारा जल्दी से शहद इकट्ठा करता है.
शहद के आखिरी निष्कासन पर कुछ ऐसे छत्तों, जिस में शहद भरा हो, को मौनपेटी में ही रहने देना चाहिए. सरसों, तोरिया, लाही व सूरजमुखी वगैरह फसलों से करीब एक महीने तक शहद प्राप्त होता?है. परागण की क्रिया से फसलों की पैदावार में भी काफी बढ़ोतरी होती है. इस के बाद जिस फसल से शहद मिलेगा वह यूकेलिप्टस का पेड़ है, जिस को किसान ने अपने खेत के मेंड़ पर लगाते हैं और वन विभाग ने काफी क्षेत्रों में इस का वृक्षारोपण किया है. इस से काफी मात्रा में शहद मिलता है. शहद के आखिरी निष्कासन के बाद शहद प्रकोष्ठ को निकाल देना चाहिए व उसे ऐसी जगह पर रखें, जहां पर मौनवंश उस की सफाई कर सकें. इन प्रकोष्ठ को छत्तों समेत एक जगह पर रख कर ढक देना चाहिए. अगले शहद के मौसम के लिए वह संरक्षित कर दिया जाना चाहिए. इन छत्तों के संरक्षण के लिए एक रसायन, जिसे पैराडाईक्लोरोबेंजीन भी कहते हैं और जो बाजार में आसानी से मिल जाता है, का प्रयोग करना चाहिए.
10 प्रकोष्ठ के लिए 25 ग्राम रसायन प्रयोग में आता ह. 10 प्रकोष्ठों को इकट्ठा कर उस के सभी छिद्रों को मिट्टी से लेप कर बंद कर दें और सब से ऊपर वाले प्रकोष्ठ पर एक कटोरे में रसायन रख दें. हवा के संपर्क में आने पर इस रसायन से एक गैस निकलती है, जो हवा से भारी होती है, इसलिए नीचे की तरफ आती है, इस से छत्ते मोमियाकीट की क्षति से बच जाते हैं. मोम के छत्ते बनाने में मौनवंश को काफी शहद खाना पड़ता है, तभी मोमिया ग्रंथि, जो उस के शरीर के निचले भाग में होती है, उत्तेजित हो मोम का भराव करती है, जिस से मौनवंश छत्ता बनाता है. ज्यादा बढ़ोतरी के कारण मौनवंश ताकतवर हो जाता है और उन में नई रानी बनाने की भी प्रवृत्ति आ जाती है, जिसे आम भाषा में स्वारमिंग या बकछूट कहते हैं. इस में नई रानियों का निर्माण होता है व मौनवंश पुरानी रानी व आधी मौनों की संख्या को ले कर नई जगहों पर चले जाते हैं. ऐसा होने पर मौनवंश फिर से कमजोर हो जाता है, जिस से शहद उत्पादन पर काफी फर्क पड़ता है. मौनपालक ताकतवर मौनवंश को 2 हिस्सों में बांट कर मौनवंश भी हासिल कर सकते हैं, जो समय आने पर ताकतवर हो जाते हैं. भारतीय मक्खी की तुलना में यूरोपियन मधुमक्खी में बकछूट की आदत कम होती है.
ठंड से बचाने के लिए मौनपालक अपनी मौनपेटी को चारों तरफ टाट से ढक दें व मौनपेटी के?अंदर जितने फ्रेमों में मौनें हैं, उन को छोड़ कर बाकी बचे फ्रेमों को हटा दें व डमी बोर्ड से अंदर का क्षेत्रफल कम कर दें. ऐसा करने से मौनों द्वारा मौनपेटी के अंदर का तापमान आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है. अगर इन बातों पर मौनपालक सही ढंग से ध्यान दें, तो वे मौनवंशों को बचा सकते हैं और काफी फायदा उठा सकते हैं.
– अभिषेक बहुगुणा व संध्या बहुगुणा