गेहूं की खेती वाले इलाकों में तापमान ज्यादा बिना मौसम की गरमी घटा सकती है पैदावार
नई दिल्ली : पिछले कुछ अरसे से मौसम जिस तरह से करवटें ले रहा?है, उस से खेती की दुनिया पर बहुत खतरनाक असर पड़ रहा?है. कुछ अरसा पहले बेमौसम की बारिश ने तो खेती का कबाड़ा किया ही था और अब बेवक्त की गरमी ने रबी की फसल का हिसाब गड़बड़ा दिया है. बिना मौसम की गरमी से रबी सीजन की खास फसल गेहूं के उत्पादन में कमी आने के पूरे आसार हैं. कृषि वैज्ञानिकों व माहिर किसानों का कहना?है कि ज्यादा गरमी पड़ने से गेहूं की फसल समय से पहले ही पक जाएगी, नतीजतन पैदावार में गिरावट आ जाएगी. वैसे तमाम कृषि विशेषज्ञों और जानकार किसानों का यह?भी कहना है कि अगर अब भी बरसात हो जाए और तापमान घट जाए तो नुकसान उतना ज्यादा नहीं होगा, जितना होने का फिलहाल अंदेशा है. उत्तर भारत के गेहूं उगाने वाले खास इलाकों में फिलहाल दिन का तापमान सामान्य से करीब 7 डिगरी सेंटीग्रेड तो रात के वक्त का तापमान सामन्य से 5 डिगरी सेंटीग्रेड तक ज्यादा दर्ज किया जा रहा?है. तापमान के ये तेवर गेहूं व रबी की अन्य फसलों के लिए घातक साबित हो सकते हैं.
इस सिलसिले में भारतीय किसान यूनियन के महासचिव चौधरी युद्धबीर सिंह कहते हैं कि तापमान में इस किस्म की बढ़ोतरी से महज गेहूं ही नहीं, बल्कि सरसों के खेतों पर भी उलटा असर पड़ेगा. मौसम सामान्य हो तो इस दौरान पड़ने वाली ओस व धुंध की नमी से सरसों और गेहूं की फसलों को अच्छाखास फायदा पहुंचता है, मगर तापमान ज्यादा होने से ऐसा नहीं हो पा रहा?है. तापमान ज्यादा होने की वजह से सरसों की फसल में वक्त से पहले ही फूल निकल आए?हैं जो कि अच्छे आसार नहीं हैं.
माहिरों का मानना है कि अगर मौसम ऐसा ही रहा तो गेहूं की पैदावार में पक्केतौर पर गिरावट होगी. मोदी नगर इलाके के माहिर किसान व ‘भारतीय किसान यूनियन’ के मंडल अध्यक्ष (मेरठ) राजबीर सिंह कहते हैं कि इस तरह की गरमी से गेहूं के दाने की क्वालिटी पर बेहद खराब असर पड़ेगा और पैदावार में भी अच्छीखासी गिरावट होगी. हालात से चिंतित राजबीर सिंह ने कहा कि पिछले साल फरवरीमार्च में हुई बेमौसम बरसात की वजह से भी गेहूं की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई?थी और अब की बार बेमौसम की गरमी की वजह से फसलें तबाह हो रही हैं. यानी नुकसान का सिलसिला लगातार जारी है, चाहे वह ज्यादा बरसात की वजह से हो या ज्यादा गरमी की वजह से. इन कुदरती आपदाओं से यह बात साफ हो जाती है कि बेवक्त या बेमौसम की चीजें मुफीद नहीं होती?हैं.
साल 2013-14 में गेहूं का उत्पादन 958.5 लाख टन रहा?था, जो साल 2014-15 में घट कर 889.5 लाख टन हो गया. अब 2015-16 में क्या तसवीर उभर कर सामने आएगी यह तो वक्त ही बताएगा, मगर असार अच्छे नहीं हैं. आमतौर पर गेहूं की बोआई नवंबर में शुरू होती है और अप्रैल तक फसल पक कर तैयार हो जाती?है. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2015 दिसंबर तक 271.4 लाख हेक्टेयर रकबे में गेहूं की बोआई की गई थी, जो पिछले साल के मुकाबले काफी कम?है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (पूर्वी क्षेत्र) के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी पुष्पनायक का कहना है कि जैसे ठंडे देशों के लोग जब गरम मुल्कों में जाते?हैं तो उन्हें चर्मरोग हो जाते हैं, वैसे ही सर्दी के मौसम की फसल को जब गरमी मिलेगी तो उस खराब असर पड़ेगा ही.
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किसानों को फसल बीमा का तोहफा
नई दिल्ली : सरकार ने नए साल के मौके पर देश के किसानों को खास तोहफा दिया है. इस का लाभ देश भर के 14 करोड़ किसान उठा सकेंगे. सरकार की इस घोषणा से मकर संक्रांति व पोंगल जैसे त्योहारों पर किसानों की खुशी दोगुनी हो गई.
नई फसल बीमा योजना को ले कर सरकार पूरी सावधानी बरत रही है, ताकि इस योजना का हश्र भी पिछली योजनाओं जैसा ही न हो जाए. पिछले 3 दशकों से चलाई जा रहीं अलगअलग फसल बीमा योजनाएं केवल 23 फीसदी किसानों तक ही पहुंच पाई हैं. इन योजनाओं में ज्यादातर उन किसानों को ही शामिल किया गया है, जिन्होंने बैंकों से कृषि लोन लिया था. इसलिए इसे फसल बीमा की जगह बैंक ऋण बीमा योजना के तौर पर ही जाना गया. प्रस्तावित मसौदे में सभी किसानों को शामिल करने के लिए इस का दायदा बढ़ाया गया है.
सरकार का अनुमान है कि प्रस्तावित नई फसल बीमा योजना में 50 फीसदी से अधिक किसान शामिल हो जाएंगे. इस के लिए बीमा प्रीमियम का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा केंद्र व राज्य सरकारें वहन करेंगी. बीमा योजना की घोषणा के बाद सब्सिडी का बोझ देख कर राज्य सरकारें विरोध जता सकती हैं. किसानों को प्रीमियम के रूप में बीमित राशि का डेढ़ से ढाई फीसदी ही देना होगा.
बेहतरीन
सोनालीका आईटीएल बना रही है कृषक समुदाय को मजबूत
नई दिल्ली : भारत की तीसरी सब से बड़ी ट्रैक्टर निर्माता कंपनी सोनालीका आईटीएल गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों के बीच सर्वाधिक पसंदीदा बन गई है.
सोनालीका आईटीएल ने किसानों को ट्रैक्टर्स और कृषि उपकरणों के सही इस्तेमाल के बारे में तालीम देने के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी बनाए हैं. सोनालीका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक रमन मित्तल ने कहा कि हम अपने किसानों को सशक्त बनाने पर ध्यान दे रहे हैं. हमारे उत्पादों को बेहद कठिन हालात में बिना गड़बड़ी के काम करने लायक बनाया जाता है.
रमन मित्तल के मुताबिक आज के समय में सोनालीका आईटीएल की मौजूदगी दुनिया भर के 80 से?ज्यादा देशों में है और यह एकमात्र भारतीय कंपनी है, जो 20 यूरोपीय देशों में मौजूद है. गुजरात राज्य के राजकोट जिले के डुमियाणी गांव में 42 ट्रैक्टरों में से 35 सोनालीका?के हैं. इस के साथ ही अमरेली जिले के त्रंबकपुर गांव में इस्तेमाल होने वाले 80 फीसदी ट्रैक्टर्स सोनालीका के ही?हैं. सोनालीका आईटीएल ने राज्य में करीब 2500 ट्रैक्टरों की बिक्री की?है. राजकोट जिले के वाडला गांव के एक किसान जयेशभाई ढींगहानी साल 2007 से ही सोनालीका ट्रैक्टर्स इस्तेमाल कर रहे हैं. उन के पास 3 सोनालीका?ट्रैक्टर्स हैं और वे सालाना 3 लाख रुपए कमा रहे?हैं. सोनालीका आईटीएल हर साल अपने होशियापुर प्रशिक्षण केंद्र में गुजरात के करीब 4 सौ किसानों को प्रशिक्षण भी मुहैया कराती है.
राजस्थान के किसानों के बीच सोनालीका ट्रैक्टर्स काफी लोकप्रिय हो रहे?हैं. राज्य में अब तक 3 हजार से?ज्यादा?ट्रैक्टर्स की बिक्री की गई है. अपने उत्पादों के जरीए सोनालीका आईटीएल किसानों को कामयाब बनाने में मदद कर रही?है. उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच भी सोनालीका ट्रैक्टर काफी लोकप्रिय हैं. सोनालीका ट्रैक्टर्स उन किसानों द्वारा भी पसंद किए जा रहे?हैं, जिन्होंने हाल ही में खेती शुरू की है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के चौक गांव के जयसिंह जायसवाल ने बताया कि सोनालीका के आर×22 का इस्तेमाल करने के बाद उन्होंने पिछले महीनों में अपनी चावल मिल से 1.5 लाख रुपए की कमाई की?है. हरियाणा की गरौथा तहसील में 94 सोनालीका ट्रैक्टर्स हैं. राज्य में रबी और खरीफ दोनों फसलों की खेती की जाती है. सोनालीका ट्र्रैक्टर्स के हैवी ड्यूटी इंजन, खेतों की जुताई और दूसरे भारी काम करने में सक्षम हैं. इसीलिए किसानों?द्वारा उन्हें सराहा जाता है. झज्जर गांव के जितेंद्र कुमार ने कहा कि अपनी 15 एकड़ कृषि भूमि में सोनालीका ट्रैक्टर का इस्तेमाल करने के बाद उन की आय और उत्पादकता में काफी इजाफा हुआ?है.
मदद
सीआरपीएफ खरीद रही है गांव वालों के उत्पाद
पटना : बिहार के नक्सल प्रभावित इलाकों में गांव वालों की तरक्की के लिए सीआरपीएफ ने भी कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं, जिन से गांव वालों और सीआरपीएफ के बीच नया रिश्ता विकसित हो रहा है. पुलिस के डर से बिदकने वाले ग्रामीण अब सीआरपीएफ जवानों से घुलमिल कर रह रहे हैं और सीआरपीएफ गांव वालों से ही दूध, सब्जी, फल और अंडे खरीद रही है. इस से गांव वालों को अपने उत्पादों को बेचने के लिए गांव से बाहर नहीं जाना पड़ रहा है, जिस से उत्पादों की ढुलाई का खर्च बच रहा है. राज्य के नक्सली असर वाले औरंगाबाद, गया, जमुई, मुंगेर और बांका जैसे जिलों के तमाम गांवों में तैनात सीआरपीएफ के जवान पास के गांवों से ही अपनी जरूरतों का ज्यादातर सामान खरीद रहे हैं. गांव वालों का मानना है कि सीआरपीएफ के जवान जहां उन्हें नक्सलियों से सुरक्षा दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन की माली हालत को भी बेहद मजबूत कर रहे हैं.
गौरतलब है कि पहले नक्सली गांवों से मुफ्त में भोजन का सामान उठा कर ले जाते थे. वे हर महीने किसी न किसी गांव से अपने लिए महीने भर के अनाज का इंतजाम किया करते थे और बदले में फूटी कौड़ी भी नहीं देते थे. सीआरपीएफ बिहार सेक्टर के आइजी शैलेंद्र कुमार बताते हैं कि सीआरपीएफ द्वारा नक्सली प्रभावित इलाकों के गांवों में चलाए जा रही कल्याणकारी योजनाओं की वजह से नक्सलियों के प्रति गांव वालों को लगावजुड़ाव खत्म होने लगा है. इस के अलावा सीआरपीएफ गांवों में हेल्थ चेकअप कैंपों का आयोजन भी कर रही है और बच्चों को किताब, कौपी, कलम, पेंसिल आदि बांट रही है. सीआरफीएफ द्वारा बुजुर्गों को मुफ्त में धोतियां और साडि़यां बांटी जा रही हैं. इस से गाव वालों और सीआरपीएफ के बीच भरोसे का रिश्ता कायम हुआ है.
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फैसला
जांच के बाद मिलेगा अनुदान
पटना : किसानों को अनुदान का लाभ पाने के लिए अपनी जमीन के खाताखेसरा की जांच करनी होगी. उस के बाद राष्ट्रीय किसान आयोग के द्वारा तय की गई किसान की परिभाषा को आधार मान कर ही किसानों को अनुदान दिया जाएगा. अनुदान की रकम आरटीजीएस के जरीए सीधे किसानों के बैंकखातों में जाएगी. राज्य के 14 लाख किसानों का उन के बैंक एकाउंट के साथ रजिस्ट्रेशन किया गया है. कृषि विभाग की समीक्षा बैठक के बाद कृषि मंत्री रामविचार राय ने बताया कि किसानों की बनाई गई सूची की जमीन स्तर पर जांच कराने के बाद सही किसानों को ही अनुदान का लाभ मिल सकेगा.
इस के साथ ही राज्य में कृषि यांत्रिकरण की रफ्तार को बढ़ाने के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की भी समीक्षा की गई. कृषि मंत्री रामविचार राय ने कृषि यांत्रिकरण की धीमी गति पर नाराजगी जताई.
तकाजा
किसानों को याद है मोदी का वादा
नई दिल्ली : पिछले दिनों वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ बजट से पहले हुई बैठक में किसानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से किसानों के लिए किए गए वादों को पूरा करने के लिए कहा.
बैठक में किसानों ने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन के लिए ऊंची आय का वादा किया था. किसानों ने कहा कि बीते 2 सालों से सूखे की वजह से काटन, चावल और कई दूसरी फसलों पर बुरा असर पड़ा है.
किसानों ने याद दिलाया कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी ने इस बात का वादा किया?था कि किसानों को उत्पादन की लागत से कम से कम 50 फीसदी तक का मुनाफा हो. किसानों की मांगों को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने अगले 5 सालों में सिंचाई परियोजनाओं पर 5 सौ अरब रुपए खर्च करने का वादा किया. किसान नेता और कृषि विशेषज्ञों ने वित्त मंत्रालय से 4 फीसदी ब्याज दर पर 5 लाख रुपए तक का कृषि ऋण देने की भी मांग जोरशोर से की. किसानों ने यूरिया की सब्सिडी को सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजने और पिछले 3 सालों की बकाया सब्सिडी के भुगतान के लिए बजट में 50 हजार करोड़ रुपए आवंटित करने की मांग की.
कृषि विशेषज्ञों ने कृषि उत्पादक संगठनों और कृषि सहकारी संगठनों की आय को आयकर के दायरे से बाहर रखने, मिल्क पाउडर के लिए बफर स्टाक बनाने और रबर आयात पर सुरक्षात्मक शुल्क लगाने की सिफारिश की. इस मौके पर अरुण जेटली ने कहा कि भारतीय कृषि के सामने मौजूद चुनौतियों में ज्यादा उपज देने वाली व प्रतिरोधी किस्म के बीजों से जुड़ी तकनीक से फायदा उठाते हुए उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत भी शामिल है. जेटली ने आगे कहा कि इसी तरह पानी के सही इस्तेमाल की जरूरत पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी?है. बोआई और कटाई जैसे कामों को भी नई तकनीकों के मुताबिक ही करना मुनासिब होगा. जेटली ने कहा कि समय पर बाजार संबंधी सूचनाएं मुहैया करा कर किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ कराना भी कृषि की मौजूदा चुनौतियों में शामिल है.
वित्त मंत्री ने चर्चा आगे बढ़ाते हुए कहा कि खेती से जुड़े प्रोत्साहन ढांचे में तब्दीली कर के उत्पादकता बढ़ाने, बरबादी घटाने और आमदनी बढ़ाने पर जोर देना होगा. इस के साथ ही कृषि उत्पादों के व्यापार में बेहतरी के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल करना जरूरी?है. जेटली ने कृषि के क्षेत्र में और ज्यादा पैसा लगाने की जरूरत पर जोर दिया. बहरहाल, बजट से पहले की बैठक में मोदी के वादे को याद दिला कर किसानों ने सही काम किया है. लगातार 2 सालों से सूखे व अन्य कुदरती आपदाओं से तबाह किसानों ने सरकार से आगामी बजट में सिंचाई सुविधा से जुड़ी आवंटन राशि बढ़ाने की गुजारिश की है. इस के अलावा किसानों ने अपनी फसलों के खरीद मूल्यों में भी इजाफा करने की मांग की है. अब गेंद मोदी के पाले में है. अपनी कुरसी मजबूत करने के लिए उन्हें किसानों का भला तो करना ही होगा. आने वाले चुनावों में अपना सिक्का कायम रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों का खयाल रखना ही होगा.
मुहिम
सरकारी तालाबों की मुफ्त बंदोबस्ती
पटना : बिहार में अब मछलीपालकों से टोकन राशि ले कर ही सरकारी तालाबों की बंदोबस्ती करने की कवायद शुरू की गई?है. तालाब की बंदोबस्ती के लिए महज टोकन रकम ली जाएगी. अब तक सरकारी जलकरों की नीलामी की जाती रही?है और इस के लिए बोली लगाई जाती थी. मछुआरों को नीलामी के लिए शुल्क जमा करना होता है. जलकरों में मछलीउत्पादन से जितनी आमदनी होती है, उस में से कम से कम 10 फीसदी सरकार को देना होता?है. इस से सरकार को सालाना 10 करोड़ रुपए तक की आमदनी होती है. पशुपालन और मत्स्यविभाग के मंत्री अवधेश कुमार सिंह ने बताया कि मछुआरों को राहत देने और मछलीउत्पादन में उन की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए अब बंदोबस्ती शुल्क को खत्म करने पर विचार किया जा रहा है.
जलकरों को बंदोबस्ती से मुक्त कर देने से मछलीपालन में मछुआरों की दिलचस्पी और कमाई दोनों बढ़ेगी. इस के साथ ही मछुआरों को मछलीपालन की नई तकनीकों को सीखने के लिए दूसरे राज्यों में भी भेजा जाएगा. अनुसूचित जाति और जनजाति के मछलीपालकों को खास सुविधाओं के साथ मुफ्त में ट्रेनिंग भी दी जाएगी.
कवायद
चावलमिलों पर नकेल कसने की तैयारी
पटना : बिहार में किसानों और सरकार से धान ले कर चावल नहीं लौटाने वाले मिलमालिकों को जेल भेजने की कवायद शुरू की गई?है. सरकार ने ऐसे चावलमिलों के मालिकों को गिरफ्तार करने और उन की कुर्कीजब्ती का आदेश जारी कर दिया?है. इस सिलसिले में 12 सौ बड़े बकायादार मिलमालकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई?है.
गौरतलब है कि पिछले 3 सालों से चावलमिलों के मालिक 1310 करोड़ रुपए का बकाया देने में टालमटोल कर रहे थे. इन मिलमालिकों पर साल 2013-14 के 150 करोड़ रुपए साल 2012-13 के 732 करोड़ रुपए और साल 2011-12 के 427 करोड़ रुपए बकाया हैं. धान ले कर चावल वापस नहीं करने के मामले में एसएफसी समेत कई विभागों के अफसरों और मुलाजिमों पर भी कानूनी कार्यवाही की जा रही है. कुल 394 अफसरों और मुलाजिमों की जांच की जा रही है और 184 पर मुकदमा दर्ज किया गया?है.
पटना की 64 चावलमिलों पर 55.61, भोजपुर की 90 मिलों पर 72.05, बक्सर की 152 मिलों पर 101, कैमूर की 357 मिलों पर 220, रोहतास की 191 मिलों पर 111, नालंदा की 84 मिलों पर 55.34, गया की 49 मिलों पर 40, औरंगाद
की 207 मिलों पर 62.15, वैशाली की 25 मिलों पर 23.66, मुजफ्फरपुर की 33 मिलों पर 66.51, पूर्वी और पश्चिम चंपारण की 153 मिलों पर 63, सीतामढ़ी की 52 मिलों पर 55.83, दरभंगा की 34 मिलों पर 39.83, शिवहर की 8 मिलों पर 17.78 और नवादा की 23 मिलों पर 20.48 करोड़ रुपए बकाया हैं. इस के अलावा अरवल, शेखपुरा, लखीसराय, मधुबनी, समस्तीपुर, सिवान, सारण व गोपालगंज आदि जिलों की सैकड़ों चावलमिलों पर करीब 90 करोड़ रुपए बकाया?हैं.
बिहार में चावलमिलों की धांधली पर रोक लगाने में सरकार बिलकुल नाकाम रही?है. बिहार महालेखाकार ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि धान को ले कर मिलमालिकों ने सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाया है. साल 2011-12 में मिलमालिक 434 करोड़ रुपए का धान दबा कर बैठ गए और उस के बाद के साल में 929 करोड़ रुपए के धान की हेराफेरी कर के सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाया. इस के बाद भी सरकार ने मिलमालिकों के खिलाफ कार्यवाही करने में जरा सी भी दिलचस्पी नहीं ली. बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाइज कारपोरेशन लिमिटेड से आरटीआई एक्टीविस्ट शिव प्रकाश राय ने इस बारे में पूरी सूचना मांगी थी. आरटीआई के तहत सूचना मिली कि साल 2011-12 में जिन मिलों पर धांधली का आरोप लगा था, उन्हीं मिलों को साल 2012-13 में भी करोड़ों रुपए के धान दे दिए गए. इतना ही नहीं केवल 50 हजार रुपए की गारंटी रकम पर ही 3 से 6 करोड़ रुपए के धान चावलमिलों को सौंप दिए गए. मिलों को धान देने के बारे में नियम यह है कि भारतीय खाद्य निगम मिलों से एग्रीमेंट करता?है, जिस के तहत मिलमालिक पहले निगम को 67 फीसदी चावल देते?हैं, जिस के बदले में उन्हें रसीद मिलती?है. उस रसीद को दिखाने के बाद ही निगम द्वारा मिलों को 100 फीसदी धान दिया जाता है.
आरटीआई एक्टीविस्ट शिवप्रकाश कहते?हैं कि उन्होंने साल 2012 में सरकार को धांधली के बारे में पूरे कागजात सौंप दिए थे. उस के बाद भी चावलमिलों के मालिकों के खिलाफ कानूनी कदम नहीं उठाए गए. अगर मिलमालिकों और धान का लेनदेन करने वाले अफसरों की पिछली 3-4 सालों के दौरान बनाई गई दौलत की बारीकी से जांच की जाए तो उन की संपत्ति आसमान पर पहुंची मिलेगी.
तोहफा
मध्य प्रदेश को फिर मिला कृषि कर्मण अवार्ड
नई दिल्ली : कृषि क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए भारत सरकार ने मध्य प्रदेश को साल 2014-15 का कृषि कर्मण अवार्ड लगातार चौथी बार दिया है. इस से पहले भी 3 सालों तक यह अवार्ड मध्य प्रदेश को ही मिलता रहा?है.
इस मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने प्रदेश के किसानों की जम कर तारीफ की व बधाई दी. मध्य प्रदेश को कृषि कर्मण अवार्ड के साथ 5 करोड़ रुपए की राशि भी दी जाएगी.
इजाफा
संसद का खाना हुआ महंगा
नई दिल्ली : संसद की कैंटीन का खाना अकसर चर्चा का विषय बनता रहता?है. कभी उस के पकवानों की चर्चा की जाती है, तो कभी चीजों के दाम मुद्दा बनते हैं. अब नए साल के मौके पर संसद का खाना महंगा होने जा रहा?है. रियायती दरों पर खाना परोसे जाने संबंधी विवादों की वजह से ही दामों में इजाफा किया जा रहा है. नए शिड्यूल के मुताबिक 18 रुपए में मिलने वाली शाकाहारी थाली अब 12 रुपए के इजाफे के साथ 30 रुपए में मिलेगी. इसी तरह 33 रुपए में मिलने वाली थाली अब 27 रुपए के इजाफे के साथ 60 रुपए की हो जाएगी. थ्री कोर्स मील की कीमत 61 रुपए से बढ़ कर 90 रुपए हो जाएगी और पहले 29 रुपए में मिलने वाली चिकन करी 40 रुपए की हो जाएगी.
नए साल में होने वाली यह बढ़ोतरी सांसदों, लोकसभा अधिकारियों, राज्यसभा अधिकारियों, सुरक्षा अधिकारियों और मीडिया कर्मियों के साथसाथ संसद के विजिटरों पर?भी लागू होगी. इस मामले में लोकसभा सचिवालय की ओर से कहा गया कि कीमतों में यह बदलाव लोकसभा अध्यक्ष के आदेश से किया गया है. संसद की कैंटीन के दामों में यह इजाफा 6 साल बाद किया गया?है. आदेश के मुताबिक बीचबीच में कैंटीन की चीजों के दामों की समीक्षा की जाएगी. सचिवालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि संसद की कैंटीन में रियायती दरों पर मिलने वाले खाने का मुद्दा मीडिया में चर्चा का विषय बना रहता?है. इसी वजह से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने संसद की फूड कमेटी को इस मामले में ध्यान देने के आदेश दिए थे. कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद कैंटीन को ‘न लाभ, न हानि’ के आधार पर चलाने का फैसला लिया गया.
इंतजाम
पुआल का होगा प्रबंधन
नई दिल्ली : दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में धुंध के कहर को थामने के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने पंजाब सरकार के नए प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है. इस के तहत धान की भूसी और पुआल के बेहतर प्रबंधन का बंदोबस्त किया जाएगा.
फिलहाल भूसी और पुआल को खेतों में जलाए जाने से दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण में इजाफा होता है. नए प्रोजेक्ट में जीवाष्म ईंधन का इस्तेमाल किया जाएगा. इस के साथ ही केरल, तमिलनाडु व मध्य प्रदेश के प्रोजेक्टों को भी मंजूरी दे दी गई है.
पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कमेटी ने इन प्रोजेक्टों को मंजूरी दे दी?है. तमिलनाडु सरकार के प्रोजेक्ट के तहत तटीय लोगों का पुनर्वास किया जाएगा. प्रोजेक्ट के तहत तटीय इलाके के 23 गांवों का भला होगा. इन प्रोजेक्टों का मकसद जलवायु परिवर्तन के खतरों को दूर करना और कार्बन उत्सर्जन घटाना?है.
राहत
बगैर शुल्क मक्के का आयात
नई दिल्ली : भारत में मक्के की फसल की भी खासी अहमियत है, पर सूखे की वजह से लगातार दूसरे साल मक्के का उत्पादन कम होने के आसार हैं. हालात से निबटने के लिए केंद्र सरकार ने सरकारी उपक्रम पीईसी को 5 लाख टन मक्का शून्य शुल्क पर आयात करने की इजाजत दी है. बड़े पैमाने पर किए जाने वाले इस आयात से?स्टार्च और पोल्ट्री इंडस्ट्री की मांग को पूरा करने में सहूलियत होगी. मौजूदा वक्त में मक्के के आयात पर 50 फीसदी आयात शुल्क लगता है. बाहर से मक्का मंगाने पर शून्य शुल्क रियायत टैरिफ रेट कोटा (टीआरओ) के तहत स्टार्च, पोल्ट्री और पशुपालन उद्योग की मांग पर दी गई है. आयात के सिलसिले में एक सीनियर अफसर ने बताया कि वाणिज्य मंत्रालय ने?टीआरओ के तहत शून्य शुल्क पर 5 लाख टन और गैर अनुवांशिक तौर पर संशोधित मक्का आयात करने की इजाजत दी?है. इस आयात के लिए पीईसी लिमिटेड को जरीया एजेंसी बनाया गया है.
पशुपालन व मुरगीपालन के कारोबार में मक्के की काफी जरूरत पड़ती?है. इस आयात से हालात बेहतर होने की उम्मीद है.
योजना
बीज उत्पादकों को भी बोनस
पटना : धान पर मिलने वाले बोनस का फायदा बीज उत्पादकों को भी मिलेगा. बोनस को न्यूनतम समर्थन मूल्य से जोड़ कर बीज की दर तय की जाएगी.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने धान पर मिलने वाले बोनस की समीक्षा करते हुए कहा हुए कहा कि कुछ साल पहले तक बीज उत्पादकों को भी बोनस का लाभ दिया जाता था, जिसे फिर से लागू किया जाएगा. किसानों से बीज खरीदने के लिए तय होने वाली दर में समर्थन मूल्य और बोनस को जोड़ दिया जाएगा. दोनों के मूल्य को जोड़ने के बाद उस में 10 फीसदी की राशि और जोड़ी जाएगी. राज्य में किसानों से बीज खरीदने के लिए दर तय करने का फार्मूला पहले से ही तय है. न्यूनतम समर्थन मूल्य केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाता है, इसलिए इस में राज्य सरकार की भूमिका कम होती है. इस के बाद भी बिहार सरकार ने यह फैसला लिया है कि अगर समर्थन मूल्य पर केंद्र या राज्य सरकार किसी भी तरह के बोनस का ऐलान करती है, तो बीज उत्पादक किसानों को भी फायदा मिलेगा. इस के अलावा बीज उत्पादकों को बढ़ावा देने के लिए बीज ग्राम और मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार जैसी योजनाएं भी चल रही हैं. इसी का नतीजा है कि राज्य के किसान अब खुद ही बड़े पैमाने पर बीज का उत्पादन करने लगे हैं.
बिहार में हर साल 3.07 लाख क्विंटल धान के बीज, 7.20 लाख क्विंटल गेहूं के बीज और 75 हजार क्विंटल मक्के के बीज की जरूरत होती है.
तरक्की
चीनी के उत्पादन में इजाफा
नई दिल्ली : चीनी का चकल्लस तो साल भर चलता ही रहता है. किसान भुगतान की मांग करते हैं और चीनीमिलें टालू मिक्सचर मिलाती रहती हैं. ऐसे में सरकार भी हाथापांव मारती नजर आती है. इन सब गतिविधियों के बीच अच्छी बात यह कही जा सकती है कि चीनी के कुल उत्पादन में गिरावट होने के अंदाजे के बावजूद चालू सीजन में उत्पादन में इजाफा जारी है. इंडियन शुगरमिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के मुताबिक 31 दिसंबर 2015 तक चीनी के उत्पादन में साल 2014 के 31 दिसंबर तक हुए उत्पादन के मुकाबले 6.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
पिछले अक्तूबर, नवंबर व दिसंबर के दौरान चीनी का उत्पादन 75 लाख टन हुआ, जबकि इस साल गन्ने की पेराई ने वाली मिलों की कुल तादाद बीते साल के मुकाबले बेहद कम रही है. इस्मा का अंदाजा है कि इस साल चीनी का उत्पादन 2.7 करोड़ टन तक पहुंच सकता है. गौरतलब है कि पिछले साल चीनी का उत्पादन 2.8 करोड़ टन हुआ था. इस्मा के आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर 2015 तक देश भर में कुल 470 चीनी मिलों में पेराई शुरू हो चुकी थी, जबकि 31 दिसंबर 2014 तक 490 चीनीमिलों में पेराई बाकायदा शुरू हो चुकी थी. बहरहाल, फिलहाल तो चीनीमिलों का काम बिल्कुल चौकस ही कहा जा सकता है.
इजाफा
मैनपुरी के किसानों को 4 गुना मुआवजा
मैनपुरी : उत्तर प्रदेश सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पिछले दिनों मैनपुरी का पक्षी विहार देखने अचानक जा पहुंचे. उसी दौरान उन्होंने कहा कि ग्रीन फील्ड एक्सप्रेसवे बनने से सब से ज्यादा विकास मैनपुरी और कन्नौज जिलों का होगा.
मुख्यमंत्री ने कहा कि एक्सप्रेसवे और ‘समान पक्षी विहार’ के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन का किसानों को 4 गुना मुआवजा दिया जाएगा. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्थानीय सांसद तेज प्रताप सिंह यादव के साथ बगैर किसी सूचना के ‘समान पक्षी विहार’ देखने जा पहुंचे थे, उन के इस तरह यकायक आने से शासन में एकबारगी खलबली सी मच गई. मुख्यमंत्री ने पक्षी विहार पहुंचने के बाद वहां मौजूद ग्रामीणों से सहज तरीके से बातचीत की. उन्होंने बेहद तसल्ली से गांव वालों की दिक्कतों का जायजा लिया. ग्रामीणों ने सहज तरीके से अपनी समस्याओं का खुलासा किया और मुख्यमंत्री ने उन्हें समस्याओं से निबटने के तरीके बताए. मुख्यमंत्री के मैनपुरी आने की जानकारी मिलते ही हाथों में बैनर थाम कर नारे लगाते हुए काफी तादाद में किसान भी पक्षी विहार पहुंच गए. तमाम किसानों ने एक सुर से ‘समान पक्षी विहार’ के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन का वाजिब मुआवजा दिलाने की मांग की
अखिलेश यादव ने किसानों से दोस्ताना तरीके से बात करते हुए उन्हें यकीन दिलाया कि आगामी बजट में खास प्रावधान कर के किसानों को उन की जमीनों का वाजिब मुआवजा दिलाया जाएगा. अखिलेश यादव ने माहिर नेता की तरह मीठीमीठी बातें करते हुए कहा कि देश भर में सब से ज्यादा बिजली उत्पादन करने की दिशा में उन की सरकार तेजी से कदम बढ़ा रही है. मुख्यमंत्री ने किसानों के जख्मों को सहलाने के अंदाज में कहा कि सूबे में भयंकर बरसात व ओलों की बारिश की वजह से तमाम किसानों की फसलें बुरी तरह तबाह हो गई थीं. इन आपदाओं में सब से ज्यादा तबाही बुंदेलखंड इलाके में हुई. मौसमी मार से तबाह किसानों को संभालने का भरोसा दिला कर मुख्यमंत्री ने मैनपुरी की फिजा में अपना रंग जमा दिया. इस बात में अब शक की कोई गुंजाइश नहीं है कि अखिलेश यादव भी अब एकदम परफैक्ट व माहिर नेता बन चुके?हैं.
अजूब
मछली 78 लाख रुपए की
टोक्यो : क्या कोई सोच सकता है कि मछली जैसी मामूली चीज भी लाखों के दाम में बिक सकती है और वह भी लाखदोलाख में नहीं, बल्कि 78 लाख रुपए में. आमतौर पर तो लोग सौ डेढ़ सौ रुपए प्रति किलोग्राम की दर से मछली खरीद कर तरकारी पकाते हैं और ठाठ से दावत उड़ाते हैं.पर यहां मामला सौडेढ़सौ का नहीं, बल्कि लाखों का है. यह हकीकत है कि एक जापानी खरीदार ने ‘ब्लूफिन टूना’ नामक मछली को 77 लाख 94 हजार रुपए यानी 1 लाख 17 हजार डालर में खरीदा. इस मछली को जापान के सुकिजी मछली बाजार में नए साल के मौके पर नीलामी के लिए रखा गया था.
इस ‘ब्लू फिन टूना’ मछली का वजन 2 सौ किलोग्राम है. यह गायब होने की कगार पर पहुंच चुकी प्रजाति की मछली है. नीलामी में लगाई गई इस मछली को जापान के उत्तरी तट के नजदीक से पकड़ा गया था. पिछले साल के मुकाबले इस नए साल (2016) के मौके पर यह मछली काफी महंगी बेची गई. सब से महंगी बेची गई ‘ब्लूफिन टूना’ नामक मछली की जापान में बहुत इज्जत यानी डिमांड है.
दरअसल जापान में इस मछली के कारोबार पर पाबंदी है, इसी वजह से इस का रुतबा ज्यादा है. मगर सवाल यह उठता है कि पाबंदी के बावजूद यह मछली लापता होने के कगार पर कैसे पहुंची?
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राहत
उत्तर प्रदेश को 1304 करोड़
नई दिल्ली : फिलहाल खेती की दुनिया में जाड़े का मौजूदा मौसम फिजा बिगाड़े हुए है. सर्दी में गरमी का असर गेहूं और सरसों की खेती के लिए कहर बन रहा है. किसान बारिश के रास्ते सर्दी की बाट जोह रहे हैं. इस बीच उत्तर प्रदेश सूबे के सूखापीडि़तों के लिए राहतभरी खबर आई है.
केंद्र ने सूखा प्रभावितों के लिए के लिए उत्तर प्रदेश को 1304. 52 करोड़ रुपए की मदद देने का ऐलान किया है. एक बड़े स्तर की बैठक में इस मदद को मंजूरी दी गई. सूखे की चपेट में आने वाले सूबों को केंद्रीय मदद देने के मुद्दे पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सरकार के कई मंत्रियों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक की थी. इसी बैठक में उत्तर प्रदेश के अलावा आंध्र प्रदेश को 433.77 करोड़ रुपए और ओडिशा को 815 करोड़ रुपए की केंद्रीय मदद देने पर मुहर लगाई गई. तेलंगाना को मदद मुहैया कराने के मामले में समिति बाद में फैसला लेगी. तमाम सूबों को मदद की यह रकम ‘राष्ट्रीय आपदा राहत कोष’ (एनडीआरएफ) से दी जाएगी. समिति ने सूखे से प्रभावित सूबों से लौटी केंद्रीय टीम की रिपोर्ट की जांच करने के बाद इस मदद का खुलासा किया. राजनीति से जुड़े लोगों का कहना है अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को मद्देनजर रखते हुए उत्तर प्रदेश को मोटी रकम देने का फैसला लिया गया है. वैसे उत्तर प्रदेश सूबे की सरकार ने केंद्र सरकार से सूखे से तबाह किसानों की मदद के लिए 2 हजार करोड़ रुपए की मांग की थी. उत्तर प्रदेश के लिहाज से कारगर साबित होने वाली इस बैठक में राजनाथ सिंह के अलावा वित्त मंत्री अरुण जेटली, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह और नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढि़या ने भी हिस्सा लिया.
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मुद्दा
पेड़ काटने के लिए आनलाइन अर्जी
लखनऊ : अब पहले जैसा जमाना नहीं रहा कि जब जिस की मर्जी हुई तो बगैर पूछेताछे कोई भी पेड़ काट डाला. अब पेड़ काटने का परमिट लेने के लिए मार्च से बाकायदा आनलाइन आवेदन करना होगा. वन विभाग ने पूरे इंतजाम को साफ करने के लिहाज से यह कदम उठाया?है. इस साल की 7 जनवरी से जो भी मरमिट जारी किए गए या आगे जारी किए जाएंगे, उन्हें विभागीय वेबसाइट पर अपलोड करना भी जरूरी होगा. निजी जमीन पर लगे पेड़ भी वन विभाग की इजाजत से ही काटे जा सकते हैं, यह इजाजत डीएफओ के दफ्तर से मिलती है. इस के बदले विभाग तय फीस भी लेता है. पहले परमिट जारी करने में घपलों की शिकायतें वन मुख्यालय को मिलती थीं, पर आनलाइन आवेदन से हालात बेहतर होंगे.स्वतंत्र भारत के बाशिंदों को इस तरह के फरमान ज्यादा पसंद नहीं आते, मगर इन्हें मानना तो पड़ता ही?है.
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बंदोबस्त
एमएमटीसी के जरीए दाल का आयात
नई दिल्ली : दाल के नाटक को सरकार दोहराने का मौका नहीं देना चाहती, इसीलिए वह इस के इंतजाम की मुहिम में जुट गई है. घटिया मानसून से फसल खराब होने के अंदेशे से अभी तक दाल के दाम चढे़ हुए हैं. यह बात सरकार के लिए चिंता का मामला है. यही सब देखते हुए दाल की कीमतों को घटाने के इरादे से सरकार ने 5 हजार टन तुअर दाल के आयात का फैसला लिया है. इस आयात के लिए टेंडर मांगे गए हैं. इस आयात के बाद घरेलू बाजार में तुअर दाल की हालत सुधर जाएगी और इस की कीमतों में गिरावट की उम्मीद बढ़ जाएगी. सरकारी कंपनी एमएमटीसी के जरीए 5 हजार टन तुअर दाल के आयात के लिए निविदाएं (टेंडर) मांगे गए हैं. दाल की मात्रा को टेंडर में मिलने वाली कीमतों के मुताबिक बढ़ाया भी जा सकता है.
दाल की आपूर्ति बेहतर होने से दाल के दामों में बीते दिनों कुछ कमी आने के बाद सरकार को लगता है कि नए साल में कीमतों में फिर से इजाफा हो सकता है. इसी खौफ की वजह से सरकार ने आयात के जरीए आपूर्ति बढ़ा कर कीमतें घटाने के इरादे से यह कदम उठाया है. काबिलेगौर है कि घरेलू बाजार में दाल की औसत कीमत अभी भी 180 रुपए प्रति किलोग्राम बनी हुई है. एमएमटीसी ने म्यांमार, मलावी व मोजंबीक से तुअर की दाल की ताजा फसल से 5 हजार टन दाल के आयात के लिए बोलियां मांगी हैं.
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मुद्दा
भंडारण सेवाओं पर छूट की मांग
नई दिल्ली : किसानों और कृषि संबंधी तमाम सेवाओं को कदमकदम पर?छूट की दरकार रहती है. कई मामलों में उन्हें छूट मिलती?भी है और करीबकरीब हर मामले में वे?छूट की मांग करते?हैं. छूट पाना किसानों की फितरत में शामिल है. पिछले दिनों उद्योग चैंबर ऐसोचैम ने वित्त मंत्रालय को सौंपे गए बजट पूर्व ज्ञापन में?छूटों की मांग की है. चैंबर का मानना है कि केंद्र सरकार को कृषि उत्पादों के भंडारण के लिए मुहैया कराई जाने वाली वेयरहाउस मैनेजमेंट और लैबोरेटरी टेस्टिंग जैसी सेवाओं को सेवा कर से छूट देनी चाहिए. इस के अलावा चैंबर ने सलाह दी?है कि जमीन और कृषि यंत्रों को लीज पर देने और गांवों में मुहैया कराई जाने वाली दूसरी सेवाओं या कृषि उत्पादों की मार्केटिंग जैसी सेवाओं को?भी सेवा कर के दायरे से अलग रखना चाहिए. हकीकत तो यह है कि किसानों और खेती के मामलों में आमतौर पर सभी सरकारें खुले दिल से छुटों का पिटारा खोल देती?हैं. इस के बावजूद किसान कभी खुश नहीं हो पाते. वाकई किसानों को खुश करना किसी चुनौती से कम नहीं नहीं?है.
सवाल किसानों के
सवाल : राजमा की खेती में कितना बीज लगेगा. उस के कीटरोगों का इलाज भी बताएं?
-कौशल शर्मा, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
जवाब : राजमा की खेती के लिए पहाड़ी इलाकों में 80 किलोग्राम व मैदानी इलाकों में 50-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज लगेगा.
राजमा में एफिड व थ्रिप्स के इलाज के लिए डाइमेथियोएट 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से इस्तेमाल करें. पोड बोरर के इलाज के लिए कार वाइल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से इस्तेमाल करें. एवील व्हाइट फ्लाई के इलाज के लिए स्प्रे फोसेलोन 35 ईसी 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से इस्तेमाल करें. रस्ट के इलाज के लिए सल्फर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.
सवाल : मुझे नाशपाती की खेती के बारे में जानकारी दें?
-सर्वजीत, सरायकेला, झारखंड
जवाब : नाशपाती की खेती समशीतोष्ण जलवायु (जहां गरमीसर्दी बराबर मात्रा में पड़ती हो) में की जाती है. इस की खेती के लिए भारी या दोमट मिट्टी अच्छी रहती है.
नाशपाती को 3 वर्गों में बांटा जाता?है:
चाइना नाशपाती : इस वर्ग में चाइना, सिनसिंसिस, पत्थर नाख व ट्रवेंटिएथ सेंचुरी प्रजातियां शामिल हैं, जो मैदानी क्षेत्रों में उगाई जा सकती?हैं.
यूरोपियन नाशपाती : इस वर्ग में लैक्सटन सुपर्ब, विलयम्स व कान्फरेंस प्रजातियां शामिल हैं. इस वर्ग की नाशपातियां कोमल, रसीली व जायकेदार होती हैं.
हाईब्रिड प्रजातियां?: इस वर्ग में लिकट, स्मिथ, काइफर व सुवाने प्रजातियां शामिल हैं. इन्हें पहाड़ी इलाकों में लगाया जाता?है.
नाशपाती की रोपाई सर्दियों में 3-5 मीटर की दूरी पर करनी चाहिए.
सवाल : मैं टमाटर की खेती करना चाहता हूं. इस बारे में जरूरी जानकारी दें?
-शिवशंकर, सीतापुर, उत्तर प्रदेश
जवाब : टमाटर को साल में 2 बार यानी जूनजुलाई व नवंबर में लगा सकते हैं. 1 हेक्टेयर में टमाटर लगाने के लिए 225 वर्गमीटर क्षेत्र में नर्सरी तैयार करते?हैं, जिस के लिए 400-500 ग्राम बीज की जरूरत होती है.
पूसा हाईब्रिड 1, 2, 4 के अलावा पूसा सदाबहार, पूसा उपहार, अर्का विकास, पूसा अर्लीड्वार्फ, पूसा शीतल व रोमा वगैरह टमाटर की उम्दा प्रजातियां?हैं.
सवाल : मुझे जैविक खेती के बारे में जानकारी दें?
-अरविंद कुमार, पश्चिमी चंपारन, बिहार
जवाब : जैविक खेती के जरीए उम्दा क्वालिटी का उत्पादन बगैर खतरनाक रसायनों के इस्तेमाल के प्राप्त किया जाता?है. जैविक खेती अपनेआप में एक खास विषय है, जिस के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं.
डा. अनंत कुमार, डा. प्रमोद कुमार मडके, डा. देवेंद्र पाल कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद