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लेखिका-रेणु दीप

रूपलावण्य में अति सुंदर  झरना हिंदी साहित्य से एमए पास, खासी मेधावी लड़की थी. लेकिन जहां चिन्मयानंद की बात आती, हमें लगता कि उस के दिमाग के सारे कपाट बंद हो गए हों. मैं जब भी उस से मिलती, उसे सम झाती कि वह क्यों एक अनपढ़जाहिल युवक से शादी कर जिंदगी बरबाद करने पर तुली है. भजनों के 2-3 कैसेटों के अलावा जिंदगी में उस की कोई उपलब्धि नहीं थी. शिक्षा के नाम पर वह कोरा था. उस के कहे अनुसार स्वाध्याय से कुछ धार्मिक पुस्तकों का ज्ञान उस ने जरूर प्राप्त किया था पर उच्चशिक्षा प्राप्त  झरना कैसे एक अनपढ़ के साथ जिंदगी बिताएगी, यह मेरी सम झ के बाहर था.

मैं ने और मेरे भाइयों ने  झरना को हर संभव दलीलें दे कर सम झाने की कोशिशें की थीं कि चिन्मयानंद के साथ शादी कर वह सारी जिंदगी पछताएगी. लेकिन हमारी दलीलों का उस पर कोई असर नहीं होता. वह यही कहती कि चिन्मयानंद मृदुभाषी, सम झदार, सरल स्वभाव का कलाकार युवक है और अगर उस ने उस से शादी नहीं की तो वह किसी और युवक से शादी कर कभी खुश नहीं रह पाएगी.

दीदी अपनी बेटी के इस फैसले से बहुत खुश थीं. वे हम से यही कहतीं कि इतनी पढ़ीलिखी मेरी बेटी आदमी की सही कद्र जानती है. किताबी पढ़ाई से कुछ नहीं होता, बस, आदमी अच्छा होना चाहिए. मेरी  झरना ने न जाने कौन से ऐसे अच्छे कर्म किए होंगे जो उसे इतना गुणी, धर्म में आस्था रखने वाला पति मिला है.

जब हम उन से पूछते कि  झरना से शादी कर चिन्मयानंद बिना किसी नियमित आय के अपनी गृहस्थी कैसे चलाएगा तो उन का जवाब होता कि, ‘उसे कमाने की जरूरत ही क्या है? हमारी इतनी जमीनजायदाद और संपत्ति आशीष और  झरना की ही तो है. हमारा किराया ही इतना आता है कि बच्चों को कमाने की जरूरत ही नहीं. चिन्मयानंद और  झरना तो बस भजन में लगे रहें, उन का घर तो हम चलाते रहेंगे.’

जब मैं ने दीदी से चिन्मयानंद के उन के घर में आ कर रहने की कैफियत जाननी चाही तो उन्होंने बताया था, ‘देख, लल्ली, मैं कितनी खुशहाल हूं कि इस जन्म में तो एक बेटाबेटी पा कर मैं धन्य हुई ही हूं. न जाने किन अच्छे कर्मों से मु झे मेरे पिछले जन्म का बेटा भी मिल गया है.

‘कोई विश्वास नहीं करेगा लल्ली, लेकिन चिन्मयानंद जब पहली बार मेरे दरवाजे पर आया तो उसे देख कर मेरी आंखों से आंसुओं की  झड़ी इस कदर लगी कि क्या बताऊं. खुद उस की आंखों से भी खूब आंसू बहे. न जाने किन अच्छे कर्मों के प्रताप से वर्षों से बिछड़े हम मांबेटे दोबारा मिले. अब तू ही बता, अगर हम दोनों के बीच कोईर् रिश्ता नहीं होता तो क्यों हम दोनों की आंखें यों  झर झर बरसतीं?

‘मु झे देखते ही चिन्मयानंद के मुंह से शब्द निकले थे, ‘मां, तू मेरी पिछले जन्म की मां है. कितने दरवाजों पर ठोकरें खाने के बाद मु झे तुम से मिलने का मौका मिला है. अब इस जन्म में मु झे खुद से कभी दूर मत करना.’ इस लड़के को देखते ही मेरे मन में अथाह लाड़ का सागर हिलोरें मारने लगता है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि इस लड़के से मेरा जन्मजन्मांतर का रिश्ता है और इस जन्म में तो कोई मेरा व उस का रिश्ता नहीं तोड़ सकता.’

हम तीनों भाईबहन व हमारे मातापिता दीदी के घर चिन्मयानंद के अड्डा जमाने से बहुत ज्यादा परेशान हो गए थे और हमें डर लगता कि कहीं यह युवक कोई अपराधी न हो जो कभी भी घर के सदस्यों को कोई नुकसान पहुंचा कर फरार हो जाए. हम ने दीदी और जीजाजी को लाख सम झाने की कोशिशें की थीं कि यों किसी अनजान व्यक्ति को घर में आश्रय देना मुनासिब नहीं और वह कभी भी उन्हें किसी तरह का भारी नुकसान पहुंचा सकता है. हो सकता है चिन्मयानंद ने सम्मोहन विद्या का प्रयोग दीदी पर किया हो जिस से वे उस के मोहपाश में जकड़ गईं.

1-2 बार हम अपनी जानपहचान के एक बड़े पुलिस अधिकारी को भी दीदी के घर ले गए जिन्होंने चिन्मयानंद से बातें कीं. लेकिन वे भी उस से पीछा छुड़ाने में हमारी कोई मदद न कर सके. एक दिन हमारे सब से बड़े भाईर्साहब दादा किस्म के कुछ युवकों को ले कर दीदी के घर पहुंचे और उन्होंने चिन्मयानंद को घर से धक्के दे कर बाहर निकाल दिया था. लेकिन यह सब देख कर दीदी ने अपना सिर दीवार से मारमार कर बुरी तरह रोना शुरू कर दिया था, जिसे देख कर मजबूरन बड़े भाईसाहब को उन युवकों के साथ वापस लौटना पड़ा था.

दीदी के इस रवैए की वजह से चिन्मयानंद को उन के घर से किसी भी तरह निकाला नहीं जा सकता था और हम भाईबहन चिंतित होने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते थे. तभी चिन्मयानंद ने एक और गुल खिलाया. हमें सूचना मिली थी कि चिन्मयानंद और  झरना की शादी हो गई है.

दीदी के लगभग सभी रिश्तेदार चिन्मयानंद के खिलाफ थे. इसलिए इस शादी में दीदी ने अपने या जीजाजी के किसी भी संबंधी को यह दलील देते हुए नहीं बुलाया कि चिन्मयानंद को भीड़भाड़ बिलकुल पसंद नहीं है और वह सीधीसादी शादी चाहता है.

हमें तो विवाह की सूचना ही शादी के 2 दिनों बाद मिली. शादी की खबर मिलने पर हम भाईबहन सिर पीट कर रह गए थे. इस युवक का जो मुख्य उद्देश्य था, इस धर्मभीरु परिवार में पुख्ता घुसपैठ करना, सो वह पूरा कर चुका था. अब हम भी चुप बैठ गए थे. पर हम भाईबहन निरंतर इस आशंका से जू झते रहते कि न जाने कब वह घर उस अजनबी युवक के किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाए और आखिरकार हमारी आशंका निर्मूल नहीं निकली. उस की वजह से ही आज आशीष की जान खतरे में थी.

हम दिल्ली के लिए घर से निकलने ही वाले थे कि वहां से खबर आई कि आशीष अब नहीं रहा.

आशीष के मरने के बाद अब  झरना अपनी मां की अपार संपत्ति की अकेली वारिस होगी, जरूर चिन्मयानंद ने यही सोच कर आशीष की हत्या का मंसूबा बनाया होगा. हम घर वालों की इच्छा तो यही थी कि दिल्ली पहुंचते ही चिन्मयानंद को आशीष की हत्या के इलजाम में पुलिस के सुपुर्द कर दिया जाए लेकिन हम सोच रहे थे कि क्या  झरना और दिल्ली वाली इस के लिए राजी भी होंगी?

लेकिन दिल्ली पहुंचने पर हमें कुछ दूसरा ही नजारा देखने को मिला. हमारे पहुंचने से पहले ही  झरना ने चिन्मयानंद को आशीष की हत्या के इलजाम में पुलिस के सुपुर्द कर दिया था और वह खुद आगे बढ़ कर पुलिस को बयान दे रही थी. हमें देखते ही वह कहने लगी, ‘‘मौसी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मैं चिन्मयानंद के प्रेमाकर्षण में अंधी हो गई थी.

‘‘मु झे इस बात का तनिक भी एहसास नहीं था कि पिताजी की दौलत के लालच में चिन्मयानंद इतना अंधा हो जाएगा कि आशीष को रास्ते से हटा देगा. मैं तो उसे बहुत ही धार्मिक, सरल हृदय युवक सम झती थी. अब पाखंडी को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाइए जिस से मेरे भाई की मौत का बदला लिया जा सके.’’

दूसरी ओर एकलौते बेटे की मौत के

गम में दीदी तो रोरो कर बेहाल हो गई थीं.

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