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दिल ढूंढ़ता, है फिर वही... फुरसत के रात दिन...‘ सामने वाले मकान से आते इस गाने की धुन को सुन कर मैं जल्दी से छत पर आ गया. शायद कोई साउंड बौक्स पर या कैसियो से इस गाने की धुन को बजा रहा था.

‘‘वाह, कितना सुंदर...‘‘ मेरे मुंह से अनायास ही निकला. छत पर उस गाने की धुन और भी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी. मैं चुपचाप खड़ा गाने की धुन को सुनने लगा.

उस धुन को सुन कर ऐसा लग रहा था, जैसे कानों के रास्ते दिल में कोई अमृतरस टपक रहा हो. ऊपर से मौसम भी काफी खुशगवार था. साफ आसमान, टिमटिमाते तारे, हौलेहौले बहती ठंडी हवाएं मन आनंदित हो उठा. तभी मैं ने देखा, ऊंचीऊंची इमारतों की ओट से बड़ा सा गोलगोल चमकता हुआ चांद, अपना चेहरा बाहर निकालने का इस तरह से प्रयास कर रहा है, जैसे कोई नईनवेली दुलहन शर्मोहया से लबरेज आहिस्ताआहिस्ता अपना घूंघट हटा रही हो. प्रकृति के इस खूबसूरत नजारे को देख कर मैं ठगा सा रह गया.

‘‘क्या देख रहे हो?‘‘ तभी अचानक पीछे से प्रीति की आवाज आई. उस की आवाज सुन कर क्षण भर के लिए मैं चौंक गया. फिर उसे देख कर मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, तुम भी देखो,  कितना खूबसूरत नजारा है न.‘‘

‘‘बहुत सुंदर है, आज पूनम की रात जो है.‘‘ प्रीति मेरे बगल में आ कर मुझ से सट कर खड़ी हो गई. फिर वह भी उस खूबसूरत नजारे को अपलक निहारने लगी.

‘‘ऐसी रात में अगर सारी रात भी जागना पड़ जाए, तो कुछ गम नहीं,‘‘ भावातिरेक में मैं ने प्रीति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

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