तब अचानक अपने कदम रोक कर बिना कुछ बोले प्रीति मुझ से लिपट गई थी.
‘‘अरे, यह हुई न बात, वैसे मैं तो तुम्हें यों ही छेड़ रहा था,‘‘ मैं ने भी भावुक हो कर उसे अपनी बांहों में समेट लिया था.
प्रीति कुछ देर तक उसी तरह मेरी बांहों में लिपटी रही. दोनों की सांसें अनायास ही तेज हो चली थीं और दिल की धड़कनों का टकराना, दोनों ही महसूस कर रहे थे. फिर मैं ने प्रीति की मौन स्वीकृति को भांप कर प्यार से उस के होंठों को चूम लिया. फिर जब दोनों अलग हुए, तो दोनों की ही आंखों में प्रेम के आंसू झिलमिला रहे थे.
‘‘चलो, अब वापस चलते हैं, काफी देर हो गई,‘‘ अपने मोबाइल पर समय देखते हुए प्रीति ने कहा.
‘‘थोड़ी देर और रुको न, तुम तो जानती हो, मैं इसी रात के लिए शहर से गांव आया हूं. अगर तुम आने का वादा न करती, तो क्या मैं यहां आता?‘‘
‘‘तुम्हें पता है, मैं कितनी होशियारी से निकली हूं. अगर घर में किसी को भनक लग गई तो...‘‘
‘‘तो क्या होगा? हम यहां घूमने ही तो आए हैं, कोई गलत काम तो नहीं कर रहे.‘‘
‘‘मेरे भोले मजनूं, यह शहर नहीं गांव है. मैं यहां 14-15 साल से रह रही हूं. तुम तो बस, 2-3 दिन के लिए कभीकभार ही आते हो. यहां बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती.‘‘
‘‘तो डरता कौन है? जब हमारा प्यार सच्चा है, तो मुझे किसी की परवा नहीं.‘‘
‘‘मेरी तो परवा है...‘‘
‘‘तुम्हें कोई कुछ कह कर तो देखे...‘‘
‘‘मैं अपने मांबाप की बात कर रही हूं. अगर वे ही कुछ कहेंगे तो?‘‘
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