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दीनप्रभु को शिद्दत के साथ एहसास हुआ कि नए समाज का जो यह नया धरातल है उस पर उस के जैसा सदाचारी, सरल स्वभाव का इनसान एक पल को भी खड़ा नहीं हो सकता है. जिंदगी के सुव्यवस्थित आयाम यदि बाहरी दबाव के कारण बदलने लगें तो इनसान एक बार को सहन कर लेता है लेकिन जब अपने ही लोग खुद के बनाए हुए रहनसहन के दायरों को तोड़ने लगें तो जीवन में एक झटका तो लगता ही है साथ ही इनसान अपनी विवशता के लिए हाथ भी मलने को मजबूर हो जाता है.

दीनप्रभु जानते थे कि अपने द्वारा बनाए उस माहौल में रहने को वह मजबूर हैं जिस की एक भी बात उन को रास नहीं आती. वह यह भी समझते थे कि यदि उन्होंने कोई भी कड़ा कदम उठाने की चेष्टा की तो जो घर बनाया है उसे बरबादियों का ढांचा बनते देर भी नहीं लगेगी. जिस देश और समाज में वह रह रहे हैं उस की मान्यताओं को स्वीकार तो उन्हें करना ही पड़ेगा. जिस देश का चलन यह कहे कि ‘ये मेरा अपना जीवन है, आप कुछ भी नहीं कह सकते हैं’ और ‘अब मैं 21 वर्ष का बालिग हो चुका हूं,’ वहां पर बच्चों को जन्म देने वाले मातापिता का नाम केवल इस कारण चलता है क्योंकि बच्चे को जन्म देने वाले कोई न कोई मातापिता ही तो होते हैं.

दिनरात की चिंता तथा काम की अधिकता के चलते एक दिन दीनप्रभु अचानक ही अपने रेस्टोरेंट में काम करते हुए गिर पड़े. अस्पताल पहुंचे और जांच हुई तो पता चला कि वह उच्च रक्तचाप और मधुमेह के रोगी हो चुके हैं. हैरीसन और पौलीन उन्हें देखने तो पहुंचे मगर बजाय इस के कि दोनों उन का मनोबल बढ़ाते, वे खुद उन्हीं को दोषी ठहराने लगे. दोनों ही कहने लगे कि अपना ध्यान नहीं रखते हैं. इतना सारा काम फैला रखा है, कौन इस को संभालेगा? अपनी औलाद के मुंह से ऐसी बातें सुन कर उन का मन पहले से और भी दुखी हो गया. इस के अलावा उन के वे भाई जिन के बारे में उन्होंने सोचा था कि साथ रहेंगे तो मुसीबत में काम आएंगे, जब उन्होंने सुना तो कोई भी तत्काल देखने नहीं आया. हां, सब ने केवल एक बार फोन कर के अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी.

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