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जरा सी बात
उस रात शायद घर का कोई भी सदस्य नहीं सोया होगा. सब अपनेअपने मन को मथ रहे थे. विचारों की झड़ी लगी थी.
भाग - 1
प्रथा को बार- बार यह एहसास हो रहा था कि वह उसकी शायद अपनी बहन होती तो कभी ऐसा नहीं करती.
भाग - 2
सुबह प्रथा ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए सब को चाय थमाई लेकिन आज इस चाय में किसी को कोई मिठास महसूस नहीं हुई.
भाग - 3
कहावत के अनुसार उस में रजनी के पात्र की कल्पना कर के अनायास प्रथा के चेहरे पर मुसकान आ गई. भावेश को लगा मानो अब उस के प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं.
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