झाड़ियों को बेतरतीब होने से पहले ही कतर देना ठीक रहता है. इसलिए प्रथा को एक सबक सिखाने के पक्ष में तो सभी थे.
“प्रथा, सुनो न...” रात को सोने से पहले भावेश ने स्वर पर चाशनी चढ़ाई. प्रथा ने सिर्फ आंखों से पूछा, “क्या है?”
“रजनी को सौरी बोल भी दो न, उस का बालहठ समझ कर. जरा सोचो, यदि यह बात उस की ससुराल चली गई तो वे लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे? खासकर तुम्हारे बारे में. तुम जानती हो न कि रजनी के ससुरजी तुम्हें कितना मान देते हैं,” भावेश ने निशाना साध कर चोट की.
निशाना लगा भी सही जगह पर लेकिन प्रहार अधिक दमदार न होने के कारण अपने लक्ष्य को बेध नहीं सका.
“इसे बालहठ नहीं इसे तिरिया हठ कहते हैं,” प्रथा ने ननद पर व्यंग्य कसते हुए पति के कमजोर ज्ञान पर तीर चला दिया. भावेश को पत्नी की बात खली तो बहुत लेकिन मौके की नजाकत को भांपते हुए उस ने इसे खुशीखुशी सह लिया.
“अरे हां, तुम तो साहित्य में मास्टर हो. एक कहावत सुनी ही होगी कि जरूरत पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है. समझ लो कि आज अपनी जरूरतु है और हमें रजनी को मनाना है,” भावेश ने आवेश में प्रथा के हाथ पकड़ लिए.
कहावत के अनुसार उस में रजनी के पात्र की कल्पना कर के अनायास प्रथा के चेहरे पर मुसकान आ गई. भावेश को लगा मानो अब उस के प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं. उस ने प्रथा को सारी बात बताते हुए उसे अपनी योजना में शामिल कर लिया.