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निती के उत्साह का गुब्बारा फुस्स हो गया. उस ने सोच लिया था कि अब वह अगले संडे भी पिकनिक पर नहीं जाएगी. उसे जाना ही नहीं है इन लोगों के साथ...

एक दिन पापा ने पुकारा, ‘निती...’ निती अपने कमरे से आ कर बोली, ‘पापा, आप ने मुझे बुलाया?’‘तुम ने बताया नहीं, तुम नैशनल बैडमिंटन टीम में खेलने के लिए चुनी गई हो.’

‘मैं भूल गई होऊंगी,’ निती ने लापरवाही से कहा. तभी निशा भी आ गई. अजेय ने कहा, ‘देखो, हमारी निती नैशनल लैवल की टीम में चुनी गई है और पेपर में इस का नाम निकला है.’

निशा ने खुश हो कर कहा, ‘अरे वाह, हमारी बेटी तो लाखों में एक है, क्या पढ़ाई, क्या स्पोर्ट्स और क्या आर्ट.’ अजेय ने गर्व से कहा, ‘आखिर बेटी किस की है, बोलो बेटी. इसी बात पर  क्या ईनाम  लोगी? तुम जो मांगो मिलेगा.’

निशा ने भी हंसते हुए कहा, ‘बेटी पापा बड़ी मुश्किल से देते हैं, मांग लो जो लेना हो तुम को.’ पर निती ने निर्लिप्त भाव से कहा, ‘आप ने पहले ही सबकुछ दे दिया है और मैं क्या मांगूं.’

निशा ने कहा, ‘हमारी बेटी तो अभी से संन्यासिन बन गई है. न तो इसे पहनने का शौक है, न सजने का. मैं इस के लिए देशविदेश से कितनी ड्रैसेस लाती हूं पर सब अलमारी में वैसे ही पड़ी रहती हैं.’

निती अपने कमरे में चली गई. वह मम्मा को बताना चाहती थी कि उसे ड्रैसेस नहीं चाहिए, उसे मम्मा से बात करने का मन होता है, पापा के साथ कहीं लौंगड्राइव पर जाने का मन होता है. पर वह जानती है वे दोनों कितने व्यस्त हैं. उन के पास समय नहीं है, इसीलिए वह कुछ नहीं कहती. वह तो यह भी नहीं बताती कि  मानस उसे रोज तंग करता है. उसे पता है, मम्मा उस की किसी बात को गंभीरता से लेती ही नहीं. एक बार उस ने उन्हें बताना चाहा था, ‘मम्मा, मुझे मानस बिलकुल अच्छा नहीं लगता.’

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