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विभा अपने नाम आते गुलाबी खतों को देख खिल जाती थी. लेकिन वह इस बात से अनजान थी कि इन्हीं खतों की वजह से वह परिवार के सभी सदस्यों की नजरों में संदेह के घेरे में आ जाएगी. क्या वाकई खत लिखने वाले के साथ विभा का कोई संबंध था?

‘‘यह लो भाभी, तुम्हारा पत्र,’’ राकेश ने मुसकराते हुए गुलाबी रंग के पत्र को विभा की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

सर्दियों की गुनगुनी धूप में बाहर आंगन में बैठी विमला देवी ने बहू के हाथों में पत्र देखा तो बोलीं, ‘‘किस का पत्र है?’’

‘‘मेरे एक मित्र का पत्र है, मांजी,’’ कहते हुए विभा पत्र ले कर अपने कमरे में दाखिल हो गई तो राकेश अपनी मां के पास पड़ी कुरसी पर आ बैठा.

कालेज में पढ़ने वाला नौजवान हर बात पर गौर करने लगा था. साधारण सी घटना को भी राकेश संदेह की नजर से देखनेपरखने लगा था. यों तो विभा के पत्र अकसर आते रहते थे, पर उस दिन जिस महकमुसकान के साथ उस ने वह पत्र देवर के हाथ से लिया था, उसे देख कर राकेश की निगाह में संदेह का बादल उमड़ आया.

‘‘राकेश बेटा, उमा की कोई चिट्ठी नहीं आती. लड़की की राजीखुशी का तो पता करना ही चाहिए,’’ विमला देवी अपनी लड़की के लिए चिंतित हो उठी थीं.

‘‘मां, उमा को भी तो यहां से कोई पत्र नहीं लिखता. वह बेचारी कब तक पत्र डालती रहे?’’ राकेश ने भाभी के कमरे की तरफ देखते हुए कहा. उधर से आती किसी गजल के मधुर स्वर ने राकेश की बात को वहीं तक सीमित कर दिया.

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