भारतीय जनता पार्टी एकएक कर के सभी मुख्य पदों पर कट्टरपंथी लोगों को बैठा रही है. भावी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कर्मठ कार्यकर्ता रहे हैं. निष्ठावान समर्थक रहे हैं. दलित होते हुए भी उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिंदू मान्यताओं को स्वीकारा है जिन में कर्मवाद शामिल है. यह भारतीय जनता पार्टी का अधिकार है कि वह अपनी नीति के समर्थकों को महत्त्वपूर्ण पद दे क्योंकि उसे 2014 के बाद एक नहीं, कई चुनावों में सफलता मिली है.
राष्ट्रप्रमुख का पद आमतौर पर हर देश में सरकार प्रमुख के इशारों पर चलने वाले को मिलता है और दोनों में यदि यह समझौता न हो तो संवैधानिक गतिरोध पैदा हो जाता है. रामनाथ कोविंद चूंकि सत्तारूढ़ दल की बात दिल से सदा मानते रहे हैं, इसलिए उम्मीद नहीं है कि सरकार से कभी मतभेद होगा. हां, विरोधी दलों का राष्ट्रपति से सरकार की शिकायत करनी महज औपचारिकता भर रह जाएगी.
कांग्रेस ने जब फखरुद्दीन अली अहमद, ज्ञानी जैल सिंह और प्रतिभा पाटिल जैसों को राष्ट्रपति बनाया था तो उस की भी इच्छा अपने यसमैन को रायसीना पहाड़ी पर बने राष्ट्रपति भवन में बैठाने की थी. भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तरफ से एक सभ्य, सुसंस्कृत व साथसाथ दलित समुदाय से आने वाले को पद देने का फैसला कर परंपरा को दोहराया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिद्ध किया है कि वे सरकार पर पूरी पकड़ बनाए हुए हैं और उन की पार्टी ही नहीं, सहयोगी पार्टियों को भी उन का साथ देना पड़ेगा.
नरेंद्र मोदी के इस चयन पर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती क्योंकि राष्ट्रपति होना ही ऐसा चाहिए जिस के बारे में विवाद कम हों और जिस की छवि साफसुथरी हो.
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