व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि पर नकली प्रोफाइल बना कर घृणा और भय फैलाने वाले संदेश, समाचारों, वीडियो क्लिप्स को फैलाना बहुत आसान है. ऐसा समाज, जो सदियों से झूठ को सच मानने में अपना बड़प्पन समझता है और जिसके लिए तर्क का मतलब धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है, को इस तरह के झूठ को फैलाने में बहुत मजा आता है. असल में अंधविश्वासी, निकम्मा, निठल्ला, आसमान से पैसा टपकने पर विश्वास करने वाला यह समाज इन झूठे संदेशों को अपनी गलतफहमी को सही ठहराने का हथियार मानता है.

भारत में व्हाट्सऐप आदि ज्यादा लोकप्रिय इसलिए हैं और फेक न्यूज इसलिए फैलती हैं क्योंकि धर्मभक्तों को इन के जरिए अपनी मूर्खता को छिपाने का अवसर मिलता है. धार्मिक अंधविश्वासी संदेशों के साथसाथ डर फैलाने वाले और दूसरों को नीचा दिखाने वाले संदेश भी प्रसारित किए जाते हैं ताकि उन्हें भी सच मान लिया जाए.

कठिनाई यह होने लगी है कि जब लोग उन झूठे संदेशों के पलटवार में उत्तर देते हैं तो भक्त तिलमिला जाते हैं. पप्पू (राहुल गांधी) के बारे में आप जितने मरजी व जैसे चाहे संदेश भेज सकते हैं पर जैसे ही मोदी, योगी और शाह के बारे में कुछ कहा, तो पुलिस ढूंढ़ढांढ़ कर आप को बंद कर देगी. फिलहाल पुलिस केवल उस व्यक्ति को पकड़ सकती है जिस ने शिकायतकर्ता के मोबाइल पर धर्म या मंत्री की पोल खोलने वाला संदेश भेजा. वह उस जड़ तक अभी नहीं पहुंच सकती जिस ने संदेश बताया या वीडियो तैयार किया. लेकिन अब केंद्र की भगवा सरकार अरबों रुपए खर्च कर के व्हाट्सऐप जैसे ऐप्स की गुप्त तकनीक को खोजने पर खर्च कर रही है ताकि संदेश या वीडियो क्लिप बनाने वाले को भी पकड़ा जा सके.

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