जीएसटी यानी गुड्स ऐंड सर्विसेस टैक्स में थोड़ीबहुत कमी कर के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असल में यह जाहिर कर दिया है कि मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों में मिली हार से वे भयभीत हैं. टैक्स में कोई खास छूट नहीं दी गई है. जो वस्तुएं अब कम टैक्स के दायरे में हैं, उन का उपयोग तो कम लोग ही करते थे. ऐसे में आम व्यापारी, मजदूर, किसान या नौकरीपेशा को इन कटौतियों से फर्क नहीं पड़ने वाला.

जीएसटी की मूल खामी यह है कि यह कानून इस धारणा पर बनाया गया है कि देश के सारे व्यापारी चोर हैं और उन्हें हर समय हथकडि़यों में रखा जाए. कर कितना है, यह इतना महत्त्व का नहीं, जितना यह, कि व्यापारी के पलपल की खबर सरकार को रहेगी ताकि वह जब चाहे व्यापारी को जेल में बंद कर सके और उस के घर वालों को पटरी पर सोने को मजबूर कर दे. हर व्यापारी को मजबूर कर दिया गया कि वह कंप्यूटर खरीदे जो हर समय जीएसटी के कंप्यूटर से जुड़ा रहे.

ईवे बिल के अनुसार तो, माल ट्रक में लादने से पहले सरकारी अनुमति लेनी जीएसटी ने जबरन थोप दी. यह आजादी, जो छिन गई, ज्यादा दर्द दे रही है बजाय टैक्स की दरों के. जीएसटी ने सामान की आवाजाही पर रोक लगा दी है और हर समय डर लगा रहता है कि आज से 4-5 वर्षों बाद सामान की बिक्री से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे तो क्या जवाब दिया जाएगा. सिनेमा टिकट थोड़ा सस्ता कर देना या महंगी गाडि़यों पर कर कम कर देना कैदियों की बेडि़यों को ढीला करना है, हटाना नहीं.

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