मानव जन्मजात शाकाहारी नहीं है और उन कुछ जीवों में से है जो शाकाहारी और मांसाहारी दोनों हैं पर शाकाहारी होने को श्रेष्ठता और शुद्धता का प्रमाणपत्र मान कर गले में लटका कर चलना भी गलत होगा. हिंसा बुरी है पर यह बुराई दूसरे आदमियों के प्रति ज्यादा है, पशुपक्षियों के लिए नहीं जो केवल जिंदा रहने के लिए एकदूसरे को खाते रहते हैं. मानव के अलावा अन्य पशु या जीव केवल आनंद के लिए या अपना शक्ति क्षेत्र स्थापित करने के लिए हिंसा नहीं अपनाते. जिन लोगों ने धर्म के नाम पर हाल ही में शाकाहारी थोपने की कोशिश की, जिसे आखिरकार उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय ने रोक दिया, वे हिंसक नहीं हैं क्या, दावा कर सकते हैं? जैन धर्म में सैकड़ों राजा हुए हैं जिन्होंने सेनाएं खड़ी कीं, युद्ध किए और हिंसा की और तभी आप को जैन मंदिर व जैन मूर्तियां दिखती हैं. ये अपनेआप पैदा नहीं हुईं. ये राजा के सैनिकों, जिन के पास हथियार होते थे, जो शत्रु को नष्ट करते थे, द्वारा स्थापित राज में कर वसूल कर बनवाए गए थे. वे आज शाकाहारी मत दूसरों पर थोपें, यह गलत है. सरकार का जैनियों के प्रति मोह अनायास नहीं उमड़ा. यह सोचीसमझी साजिश है जो मांसाहारी मुसलमानों को परेशान करने मात्र के लिए अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है. इस से जिन व्यवसायियों का धंधा खराब होता है उन में हिंदू और मुसलिम दोनों हैं. हां, हिंदू आमतौर पर नीची जातियों के होते हैं जिन्हें सवर्ण अछूतों की श्रेणी में रखते हैं. उन का धंधा बंद कर के इस व्यापार में लगे सभी पर नियंत्रण लगेगा. गो वध को बंद कर भी यही किया जा रहा है. वातावरण पैदा किया जा रहा है कि मानो गो हत्या केवल मुसलिम करते हैं. मुसलिमों में गोभक्ति नहीं है क्योंकि उन्हें ब्राह्मणों को गोदान नहीं करना होता पर उस का व्यापार हिंदूमुसलिम दोनों ही करते हैं और ये व्यापारी गरीब बेचारे हैं.

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