सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू ने गुड फ्राइडे के दिन न्यायाधीशों का एक सम्मेलन कर विवाद पैदा कर दिया है. भारतीय जनता पार्टी के कट्टरवादी, विधर्मी विरोधी माहौल में यह सम्मेलन गुड फ्राइडे के दिन शायद किसी चूक के कारण आयोजित किया हो, यह संभव था पर सीनियर अधिवक्ता लिली थौमस और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की आपत्तियों के बाद यह गंभीर हो गया है. मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में कुरियन जोसेफ ने यह तक लिख दिया कि क्या इस तरह के सम्मेलन दीवाली, होली या दशहरे को आयोजित किए जाने के उदाहरण हैं.

उत्तर में मुख्य न्यायाधीश का कहना कि एक जज के पारिवारिक कारणों से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण न्यायालय की संस्था है और संबंधित जज को अपने परिवार को यह बात समझानी चाहिए. असल में धार्मिक त्योहारों पर किसी तरह का जबरन अवकाश होना ही नहीं चाहिए. धर्म की धौंस कि जिस दिन वह कहे उस दिन सब लोग काम छोड़ कर धर्म के नाम पूजापाठ और उस से ज्यादा दानपुण्य में लग जाएं, गलत ही है. धार्मिक अवसरों पर, देवीदेवताओं या नेताओं के जन्मदिन पर अवकाश रखना अपनेआप में गलत है. अगर दीवाली या ईद जैसे त्योहार कुछ लोगों को मनाने हैं तो वे काम न करने को स्वतंत्र होने चाहिए. हरेक व्यक्ति साल में 4-5 दिन अपनी मरजी के दिन तय कर ले और उन दिनों में वह चाहे घर बैठे या कहीं अंधविश्वासी बन कर सिर टिकाए, लाइनों में लगे, जेबें कटाए, दानपुण्य करे, यह उस की अपनी इच्छा पर निर्भर होना चाहिए. दूसरे, पहले की तरह उस दिन काम करने के लिए स्वतंत्र होने चाहिए.

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