दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने अवैध कही जाने वाली बस्तियों को नियमित करने का काम शुरू करा दिया है. अब तक पूरी दिल्ली में फैली सैकड़ों ऐसी बस्तियों में, सरकारी रिकौर्डों के अनुसार, रहने वालों के पास मालिकाना हक नहीं थे. काफी बस्तियां ऐसी जमीनों पर हैं जो किसानों से ली गईं. उन जमीनों को पिछली सरकारों ने भूमि अधिग्रहण कानून के तहत उन से जबरन छीना था. चूंकि छीनने के बाद सरकार उन जमीनों पर कुछ नहीं कर पाई थी, पुराने किसान मालिकों ने वहां फसलों की जगह मकान उगवा दिए और आज अवैध कही जाने वाली उन कालोनियों में लाखों लोग रहते हैं. अगर दिल्ली की नई सरकार इस काम को तुरतफुरत कर दे तो ही कहा जाएगा कि सत्ता में नई तरह की सरकार आई है. इन्हें कानूनी जामा पहनाना कठिन नहीं है. सरकार को सिर्फ 4-5 आदेश जारी करने हैं और बिना पैसापाई खर्च किए लाखों मकानमालिक सरकारी अफसरों की घूसखोरी से मुक्ति पा जाएंगे.
दिल्ली में राज्य सरकार के अलावा कौर्पाेरेशन और दिल्ली डैवलपमैंट अथौरिटी भी हैं पर इस बड़े काम के लिए एक अजगर कम होगा, बाकी 2 अजगरों को भी ढीला होना पड़ेगा. अगर निवासियों को रहने का पक्का हक मिलेगा तो वे अपने मकानों को सुधारेंगे. खरीदफरोख्त बढ़ेगी. विरासत के बंटवारे के समय विवाद कम होंगे. गृह और संपत्ति कर में बढ़ोतरी होगी. कालाधन कम लगेगा. अरविंद केजरीवाल को लीजहोल्ड का तमाशा भी समाप्त करना चाहिए. जिस जमीन को सरकार ने बेचा है वह नागरिक की अपनी है और अनुबंध चाहे कैसा भी हो, सरकारी दखल समाप्त हो और पूरा शहर फ्रीहोल्ड माना जाए. यह एक आदेश से हो सकता है या कानून में छोटे संशोधन से. यह बड़ी राहत देने वाला छोटा काम होगा.
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