याकूब मेमन को फांसी देने पर विवाद उठाने वालों के खिलाफ जिस तरह से भारत की भगवारंगी जनता बौखलाई और फांसी का विरोध करने वालों को देशद्रोही व न जाने और क्याक्या कहने लगी, वह यह दर्शाता है कि भारत की तथाकथित प्रबुद्ध जनता को केवल धर्म का रंगीन चश्मा पहनने की आदत है और वह भारत की विश्व की प्रगति की रेस में पिछड़ने, गरीबों की बढ़ती गिनती, चीन की छलांगों, शासन की दुर्व्यवस्था के प्रति उतना चिंतित नहीं हैं जितना धार्मिक मामलों में भारत विश्व के मुकाबले हर निशान पर पीछे नहीं, कहीं पीछे है और जो देश, 20-30 साल पहले भारत से पीछे थे, आज तेजी से आगे दौड़ रहे हैं. हमारी गति तेज हुई है पर जो हम से आगे हैं, उन की गति इतनी है कि हमारी तेजी के बावजूद हमारा अंतर बढ़ रहा है.

अगर कुछ अच्छा होता दिख रहा है तो केवल यही कि हमारे यहां के अमीर गरीबों का पैसा और ज्यादा सफाई से टैक्सों, मुनाफों, मनोरंजन के साधनों, शराब, लौटरी आदि के जरिए लूट पा रहे हैं और एक विशिष्ट समाज बना पा रहे हैं जो काफी बड़ा है और जिसे दिखा कर विश्व में भारत की धाक जमाई जा सकती है. वरना कहीं भी देख लें, हम पीछे हैं. कृषि उत्पादन को लें. चीन एक हेक्टेअर से 6.5 टन चावल और 4.7 टन गेहूं पैदा करता है, हमारा किसान क्रमश: 3.1 टन और 2.9 टन. इसे पैदा करने के लिए चीन प्रति हेक्टेअर 92 किलो खाद इस्तेमाल करता है तो भारतीय किसान 138.6 किलो. जाहिर है भारतीय किसान की तकनीकी जानकारी और जेब में पूंजी कहीं कम है. किसान ही नहीं, व्यापारी भी पीछे हैं. व्यापार करने की सहूलियतों में भारत का स्थान 189 देशों में 142 है जो पिछले 1 साल में 2 स्थान नीचे और गिर गया. चीन ने पिछले 10-12 सालों में 13 करोड़ नई नौकरियां पैदा कीं पर भारत में पिछले 8 सालों में कोई नौकरी नहीं पैदा हुई. हमारे यहां जो नौकरी पर हैं उन की उत्पादकता कम है, वे झगड़ालू हैं, नया सीखना नहीं चाहते. इन मुद्दों पर हम भारतीयों का खून नहीं खौलता. हिंदूमुसलिम मुद्दे पर हमारा सोशल मीडिया भरा पड़ा है. आप को एक पोस्ट नजर नहीं आएगी कि जो काम करो ढंग से करो, पूरा करो, लग कर करो. एक जन भी सलाह नहीं देगा कि 24 घंटों में 10 घंटे तो काम करो. एक जना यह नहीं बताएगा कि मशीनों से काम ज्यादा कैसे लें. पेड़ों से फल ज्यादा कैसे लें, खेती की उपज कैसे बढ़ाएं. बस, सस्ते चुटकुले सुनवा लो, विधर्मी को गाली दिलवा लो. आजकल भगवारंगी कुछ ज्यादा ही मुखर हो रहे हैं पर इस से बनना नहीं है, सिर्फ बिगड़ना है.

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