इस देश का हाल यह है कि एक गरीब की बुढ़ापे से पहले मौत का राज खोलने के लिए पैकिंग का जरा सा कागज हटाओ कि जहरीले बिच्छुओं का जमघट दिखाई दे जाएगा. हर गरीब की मौत चाहे आग लगने पर हो, सड़क दुर्घटना में हो, दंगे में हो, अस्पताल में हो, खुदकुशी से हो, मारपीट से हो, ढूंढ़ोंगे तो पता चलेगा कि वह उन जहरीले बिच्छुओं से मरा है, जो अमीर ऊंची पहुंच वाले लोगों के रहमोकरम पर पल रहे हैं.
गोरखपुर में औक्सिजन की कमी की वजह से 60 बच्चे मरे तो अखबारों की जांच से एकएक बिच्छू निकल रहा है. कभी पता चलता है कि औक्सिजन का ठेका तो 3 सौ मील दूर इलाहाबाद या लखनऊ की फर्मों को दिया गया था. कभी पता चलता है कि सप्लायरों को भुगतान महीनों नहीं किया जाता. कभी पता चल रहा है कि सिलैंडर में औक्सिजन ही कम आती है.
बिहार और उत्तर प्रदेश में आजादी के 70 साल बाद भी बाढ़ आने पर हर साल सैकड़ों जानें जाती हैं, लाखों भूखे तरसते हैं. सरकारें बाढ़ नहीं रोक सकतीं, तो पक्के 2-3 मंजिले मकान तो बनवा सकती हैं, पर सरकारों को तो बिच्छू पालने हैं, जो लोगों को जहर के डंक मारें. अब सरकार के बिच्छू और खूंख्वार हो गए हैं, क्योंकि अब एक पार्टी का राज पूरे देश में है.
यही बिच्छू किसानों को खा रहे हैं. जब अकाल पड़ता है, तो उन की जेब खाली. जब बारिश ज्यादा हो, तो फसल डूब जाती है. जब भरपूर फसल हो जाए, तो अनाज टका सेर मिलना शुरू हो जाता है. इस दौरान महाजन और बैंक का सूद बिच्छुओं के लिए जहर बनाता रहता है. कोई बिच्छुओं को मारे नहीं, सरकार इस के लिए कानून बनाती रहती है.