देशभक्ति का नया नारा धर्मा-देशभक्ति है, यह उच्च न्यायालय की जज प्रतिभा रानी के कन्हैया के मामले में सीमाओं पर जवानों की कुरबानियों का हवाला दिए जाने के कुछ दिन बाद यह साफ हो गया. देश के जवान सीमा पर नहीं लड़ रहे, वे तो श्रीश्री रविशंकर के महाधार्मिक उत्सव पर दिल्ली में यमुना नदी को रौंदने के आदेशों का पालन करते हुए नदी पर पुल बनाते दिखे. कन्हैया कुमार के मामले में देशभक्ति का राग अलापा गया और बारबार जवानों की कुरबानियों की बातें कही गईं पर ये जवान देश की रक्षा हरियाणा में जाटों के उपद्रवों से बचाने में करते दिखे, उन जाटों से जिन्हें अभी तक देशद्रोही नहीं कहा गया है जबकि उन्होंने गैरजाट नागरिकों के मकान, दुकान तो जला ही दिए, शायद औरतों के रेप भी किए.

औरतों के रेप के सभी मामले पुलिस में नहीं गए पर ये औरतें अब जीवनभर घरों की जेलों में कैदियों का जीवन जिएंगी, खुली आंखों से उन के घर वालों ने उन की इज्जत तारतार होते देखी थी. जाटों के खिलाफ अब तक धर्मादेश नहीं जारी किया गया क्योंकि आरक्षण मांगते हुए भी वे धर्मटैक्स तो चुका ही रहे हैं. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने तो इस महापाखंडी सम्मेलन में आने से इनकार कर दिया परंतु पूरी केंद्र सरकार हाथ बांधे श्रीश्री रविशंकर की सेवा में 11 मार्च से 13 मार्च तक खड़ी रही और सिद्ध करती रही कि देश की सरकार की नजर में ऋषियोंमुनियों की जगह रामायण, महाभारत और पुराण कथाओं की तरह है.

दिल्ली के यमुना तट पर 35 लाख लोगों के लिए करोड़ों का विशाल, भव्य मंच बना कर श्रीश्री रविशंकर ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बनाए गए ग्रीन ट्रिब्यूनल को ठेंगा सा दिखा दिया क्योंकि उन्होंने बहुत सी बातों का उत्तर ही नहीं दिया. योग अध्यात्म के साथ रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर के उन्होंने पुराणवादी सोच पर सीमेंट लगाया और बहुत सा सीमेंट रेत में रह जाएगा या यमुना के पानी में घुल जाएगा, इस में संदेह नहीं है. यह अफसोस की बात है पर इस का अंदाजा था कि भारतीय जनता पार्टी का एजेंडा किसी विकास, किसी औद्योगिकीकरण, किसी सुशासन का कम, धर्म प्रचार का ज्यादा ही रहेगा. योग, सूर्य उपासना, मंदिरों के निर्माण, मूर्तिपूजा, इतिहास के पुनर्लेखन, वर्णव्यवस्था, भारत माता की पुकार को ईश्वरजनित मनवाना आदि पर ही सरकारी फैसले मुखर हैं.

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