गुजरात में पाटीदारों का आंदोलन अभी सुलझा नहीं, कि दलितों का आंदोलन शुरू हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृहराज्य जाति के झगड़ों में बुरी तरह फंस गया है और नहीं लगता, कि मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह इसे सुलझा पाएंगे. दलितों का आंदोलन विशुद्ध धार्मिक है. हुआ यह कि गोसेवकों का लबादा ओढ़े ऊंची जातियों के कुछ लोगों ने 4 दलितों को नंगा कर बुरी तरह मारा कि उन्होंने गाय का चमड़ा क्यों छीला. अब राज्यभर के दलित सड़कों पर उतर आए हैं. पाटीदारों की तरह उन्होंने भी कट्टरपंथियों के खिलाफ मोरचा खोल दिया है. जेल से छूटे हार्दिक पटेल ने दलितों का साथ देना शुरू कर दिया है.

गुजरात के अमरेली, गीर सोमनाथ, जूनागढ़, पोरबंदर और राजकोट इलाकों में भारी भीड़ ने आगजनी की. असल में गुजरात की शांति के नीचे जातीय अनबन सालों से सुलग रही थी. गुजरात की विशेषता यह रही कि वहां गैर सवर्ण समाज में से पिछड़ों को 100-150 सालों से पढ़ाईलिखाई के अवसर भी मिले और उन्हें व्यापारों में भी उतरने का अवसर मिला. मुसलिम राजाओं ने वहां जातिगत भेद का लाभ नहीं उठाया जिस के कारण पिछड़ी जातियां दमदार और पैसे वाली हो गईं और वे सवर्णों के मुकाबले ही नहीं, उन के साथ आ खड़ी हुईं. ये पिछड़ी जातियों के गुजराती ही थे जो दुनियाभर में व्यापार करने के लिए चले गए और आज अफ्रीका, अमेरिका व दक्षिणी अमेरिका में ऐसे शहरी इलाके दिख जाएंगे जो राजकोट की गलियों जैसे लगेंगे. उन्होंने अपने अलग हिंदू मठ बना लिए और सवर्ण हिंदुओं से ज्यादा भव्य मंदिर बना डाले. लेकिन अब यह समाज धीरेधीरे सवर्णों से नाराज होने लगा है क्योंकि पढ़ाईलिखाई में यह सवर्णों का मुकाबला नहीं कर पा रहा और पैसा होने के बावजूद, इसे बराबर का नहीं समझा जा रहा.

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