व्लादिमीर पुतिन चाहे रूस के स्टालिन बनने की कोशिश कर रहे हों पर अब दुनियाभर में मानव अधिकारों, शासकों के अनाचारों और अत्याचारों की इतनी आवाजें उठनी शुरू हो गई हैं कि नरेंद्र मोदी की तरह पुतिन को भी सफाई देनी पड़ रही है. जरा से विरोध पर जेल में ठूंस देना रूस में बहुत पुराना राज करने का तरीका है, जैसे भारत में धर्म के नाम पर तोड़फोड़ करना, आग लगाना, मार डालना है.
व्लादिमीर पुतिन ने पिछले साल पूसी रौयट नाम के म्यूजिक ग्रुप की 2 लड़कियों को पुतिन विरोधी गाना गाने पर जेल में बंद कर दिया था. उन्हें उम्मीद थी कि बाकी कैदियों की तरह ये भी माफी मांग लेंगी पर तोलाकोेन्निकोवा व सख्त अल्योरिवना सख्त जान साबित हुईं. अंतर्राष्ट्रीय दबाव में उन्हें छोड़ना पड़ा और अब वे गाने के साथ रूस के जेलों में बंद औरतों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की पोल खोलने में जुटी हैं.
हाल ही में रूस के उत्तरी धु्रव के निकट समुद्र बने रूसी तेल कुएं पर चढ़ने पर बंद किए ग्रीन पीस के कार्यकर्ताओं को भी जेल से छोड़ना पड़ा था. रूस ने अपने एक अरबपति को भी जेल से छोड़ा है जो पुतिन विरोध बन गया था.
अगर कोई शासक सोचे कि वह बांह मरोड़ कर आज राज कर सकता है तो गलत है. उत्तरी कोरिया जैसे देश अब गिनतीभर के रह गए हैं जहां के शासक ने अपने चाचा को ही भूखे कुत्ते छुड़वा कर मरवा डाला था. उत्तरी कोरिया अपने राष्ट्रपति किम इल सुंग के परिवार की तानाशाही की भारी कीमत अदा कर रहा है. उस के पास आणविक बम है, इसलिए दूसरे देशों के लोग चुप हैं वरना वहां भी तख्ता पलटा जा चुका होता.
अब जनता वोट से तानाशाहों को जन्म देने को तैयार नहीं है. अब पैसे के लालच या बंदूक के बल पर राज नहीं किया जा सकता. अमीरों के विकास को सुशासन कह कर तानाशाही मनसूबे पूरे करना आसान नहीं है.
पूसी रौयट जैसा आंदोलन दिल्ली में हो चुका है जिस का नतीजा अरविंद केजरीवाल हैं. मिस्र, ट्यूनीशिया, सीरिया, लेबनान, लीबिया, कतर इस का स्वाद चख चुके हैं. अब ‘जियो और मन की करने दो’ का युग है. संस्कारों, संस्कृति, विशाल पुतलों को गिराने का समय है, बनाने का नहीं.