आखिरी दिनों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की छानबीन कुछ ज्यादा ही की जा रही थी. इस में आश्चर्य की बात नहीं है. भारतीय जनता पार्टी और कांगे्रस, जिन की कई राज्यों में सरकारें हैं, मीडिया पर काफी अंकुश लगाए रख सकती हैं. टैलीविजन चैनलों की डोर तो केंद्र के सूचना व प्रसारण मंत्रालय के हाथ में है ही, ज्यादातर दैनिक समाचारपत्र सरकारी विज्ञापनों के बल पर चल रहे हैं. वे जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल जैसे को एक हद तक ही सहन किया जा सकता है.

आम आदमी पार्टी के नेता व कार्यकर्ता किसी दूसरे ग्रहों से नहीं आए हैं. वे इसी देश की उपज हैं और जानते हैं कि सत्ता का उपयोग तभी है जब दुरुपयोग किया जा सके. अगर सत्ता मिलने पर वे उस का दुरुपयोग करने लगें तो बड़ी बात नहीं है. समाजसेवी संस्थाओं का हाल हम देख ही सकते हैं.

तप, त्याग, संयम, निष्काम कर्म, ईश्वरीय सत्ता में विश्वास आदि के प्रवचन देने वाले भगवाधारी संतों की संपत्तियों का विवरण आएदिन दिखता है. आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में से कुछ अगर महान नेताओं और महान संतों की डगर पर चलने लगते तो आश्चर्य न होता पर इस का अर्थ यह नहीं था कि सब काजल की कोठरी में रंग गए थे.

काफी दिनों से आम आदमी पार्टी के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा था ताकि जनता मुख्य पार्टियों तक ही अपने को सीमित रखे जो निरंतर अपने चहेतों को खुली छूट देती हैं कि कमाओ और वोट जमा करो.

कांगे्रस सीधे पैसा लेना चाहती है तो भारतीय जनता पार्टी धर्म की दुकानों को प्रोत्साहित कर के उन्हें अमीर बना कर उन से अपने भंडार भरना चाहती है. दोनों के लिए शक्ति का महत्त्व है क्योंकि इसी से पैसा बनेगा.

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