भारत ही नहीं, लगभग पूरे विश्व में जैसेजैसे धर्म का व्यापार चमक रहा है, धर्म के नाम पर अलगाव भी बढ़ रहा है. धर्म का व्यापार आज का सब से चमकता व्यापार कहा जा सकता है. जिस तेजी से चर्च, मसजिदें, मंदिर, गुरुद्वारे, बौद्ध मंदिर बन रहे हैं और हर साल ऊंचे और भव्य किए जा रहे हैं, उसी तेजी से जनता में आपसी अविश्वास गहराता जा रहा है.

यह विडंबना है कि शिक्षा, तकनीक, संचार साधनों से एक तरफ दुनिया के देशों की सीमाएं लगभग मिट रही हैं, जबकि दूसरी ओर धर्म के नाम पर खींची गई लकीरें ज्यादा गहरी हो रही हैं. उदार यूरोप और अमेरिका में भी धर्म के नाम पर व्यापार खूब चमक रहा है. पोप के किसी जगह पहुंचने पर जो भीड़ उमड़ती है, वह सुबूत है कि कट्टर कैथोलिकों का जोर और ज्यादा हो रहा है.

यह सही है कि व्यवहार में लोग कहते पाए जाते हैं कि वे धर्म का भेदभाव नहीं रखते पर यही सही है कि वे धर्म पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं. दुनिया के कई देश धर्म के कारण लगी आग से झुलस रहे हैं चाहे वह अफगानिस्तान हो, ईरान हो या सीरिया हो. यही नहीं, विकसित देशों की जो सरकारें सुरक्षा पर ज्यादा, और ज्यादा पैसा खर्च कर रही हैं वे धर्म के फैलते आतंक के कारण ही कर रही हैं. अब डर यह नहीं कि चीन या रूस की फौजें कहीं कुछ न कर डालें बल्कि डर यह है कि थोड़े से आतंकवादी ही कहर न ढा दें.

यह सब उन पैसों से हो रहा है जो भक्त देते हैं. भारत में बिहार राज्य के गया जिले में बौद्ध मंदिर पर टनों सोना लगाया जा रहा है जो थाईलैंड के भक्तों ने दिया है. अफ्रीका के एक देश आइवरी कोस्ट में कैथोलिक चर्च वैटिकन सिटी से भी ज्यादा खूबसूरत बना है. पूरे अरब क्षेत्र में बहुत विशाल मसजिदें बनी हैं.

धर्म का व्यापार इंटरनैट, टैलीविजन, रेडियो, मोबाइलों से जम कर किया जा रहा है और हर जगह बारबार कहा जाता है दान दो, और दान दो. धर्म का नाम ले कर कितने ही देशों में लोकतंत्र के सहारे सत्ता में आने की कोशिशें की जा रही हैं. वर्ष 2012 में मिट रोमनी ने अमेरिका में ऐसी कोशिश की थी, जैसी नरेंद्र मोदी भारत में कर रहे हैं.

इन का उद्देश्य पैसा कमाना है, किसी तरह के भद्र व्यवहार का विस्तार करना नहीं. एक तरह से अब ज्यादातर धर्म कहने लगे हैं, कमाओ और कमाने दो. पर इस चक्कर में जब विवाद खड़े हों तो बोस्निया, सीरिया, मुजफ्फरनगर, गुजरात जैसे नरसंहार होते हैं.

धर्म ऐसा व्यापार है जो दूसरों का गला घोंटने की सलाह दे कर पनप रहा है. इन दूसरों में दूसरे धर्मों के लोग तो होते ही हैं, अपने धर्म के वे लोग भी होते हैं जो धर्म की अनैतिकता के राज खोलते हैं. धर्मों को दूसरे धर्म वालों से ज्यादा डर अब अपने ही धर्म वालों से लगता है. अपने धर्म वाले भी व्यापार को फीका करते हैं. यह मानना पड़ेगा कि हमारे देश में आसाराम जैसे को पकड़ने की हिम्मत दिखाई गई है पर यह अपवाद है. धर्म ने एक व्यापारी की बलि दी है ताकि बाकी बच जाएं.

खुश न हों, धर्म के महल बनते रहेंगे, मूर्खता कहीं नहीं जाने वाली.

 

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