एक तरफ जनता दल (यूनाइटेड) के बहुत महत्त्वपूर्ण नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के ही लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज व शत्रुघ्न सिन्हा जैसों ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग की तरफ से प्रधानमंत्री पद के भावी उम्मीदवार के नाम पर सवाल खड़े कर के नरेंद्र मोदी के फूलते गुब्बारे को फुस्स नहीं किया तो उस की गैस भरी जाने को कम जरूर कर दिया. नेताओं के सूखे से त्रस्त भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत के बाद हाथोंहाथ ले लिया था, बिना सोचेसमझे कि यह चमकती रोशनी लाख वाट का बल्ब है या कहर ढाती बिजली की कड़क.

गुजरात की सफलता पर कम, गुजरात के मुसलमानों को सबक सिखाने की क्षमता पर टिकी नरेंद्र मोदी की ख्याति से कट्टर हिंदू बेहद खुश हैं. उन्हें लगता है कि द्वारका का चक्र घुमाता कृष्ण आखिर इंद्रप्रस्थ पर विजय के लिए आ ही गया है और उसे केवल सारथी नहीं, पांचों पांडवों की जगह भी एकसाथ मिलने से कोई रोक नहीं सकता.

ये कट्टर हिंदू भूल रहे हैं कि महाभारत का युद्ध जनता के भले के लिए नहीं, पांडवों की उस सिंहासन की जिद के कारण लड़ा गया था जिस पर उन का कोई हक नहीं था. वे यह भी भूल रहे हैं कि कृष्ण ने उन पांडवों का साथ दिया था जो अपने पिता की संतानें न थीं. वे यह भी भूल रहे हैं कि कृष्ण ने पांडवों का साथ इसलिए दिया था क्योंकि वे किसी भी कीमत पर युद्ध कराना चाहते थे ताकि इंद्रप्रस्थ या हस्तिनापुर का राज नष्ट हो जाए.

नरेंद्र मोदी उन्हीं कृष्ण के पदचिह्नों पर चल रहे हैं. ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ का राग अलाप कर वे यह कहते फिर रहे हैं कि उन्होंने सोमालिया जैसे गुजरात को10 साल में बदल दिया. उन के आने से पहले गुजरात पिछड़ा, गरीब, सूखे, बाढ़, गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार, रोजमर्रा बदलती सरकारों, कंगाल अपराधियों का गढ़, औरतों के लिए असुरक्षित, बेकारों से भरा, उद्योगव्यापार विहीन जंगल था जिसे उन के 10 सालों ने अग्रणी बना दिया, सुधार दिया.

एक झूठ को सौ बार कहा जाए तो सच हो जाता है, यह हिटलरी वाक्य नरेंद्र मोदी ने पूरी तरह अपना लिया है. हिटलर के पास जैसे जरमनी के दुखों का दोष मढ़ने के लिए यहूदी थे, वैसे ही नरेंद्र मोदी के पास मुसलमान और दलित हैं और इन दोनों से नफरत करने वाले कट्टर हिंदू (जो उन की कमाई पर ऐश करने में कभी हिचकते नहीं हैं) नरेंद्र मोदी की वाहवाही में लगे हैं.

नीतीश कुमार ने तो सिर्फ यह कहा है कि उन्हें विघटनकारी नेता नहीं चाहिए. उन्होंने अभी तक नरेंद्र मोदी का नाम ले कर विरोध नहीं किया पर वे नरेंद्र मोदी के पापों का बोझ अपने सिर पर नहीं लेना चाहते.

बात अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा की नहीं, बल्कि यह है कि क्या देश विभाजनकारी, दंभी, सचझूठ में भेद न करने वाले को केंद्र की सत्ता सौंप कर चैन से बैठ सकता है?

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...