प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में कह डाला है कि कांग्रेस आम लोगों से पैसा छीन कर उन को बांटना चाहती है जिन के बच्चे ज्यादा होते हैं, यानी मुसलमानों को. आम जनता में यह गलतफहमी बड़ी जोर से फैली है कि 4 शादियां कर के मुसलिम ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं और 2002 के गुजरात विधानसभा के चुनावों में नरेंद्र मोदी यह कहते घूमे थे कि वे 5 से 25 हो रहे हैं.
हिंदुओं की माताओं और बहनों के मंगलसूत्रों पर कांग्रेस की नजर है जिन्हें छीन कर वह बांटना चाहती है, प्रधानमंत्री ने खुलेआम यह आरोप लगाया. असल बात यह है कि हिंदू औरतों की सोच और संपत्ति यदि कहीं जा रही है तो वह मंदिरों में जा रही है और नरेंद्र मोदी की पार्टी ही नहीं, उस के कर्मठ समर्थक, जो मंदिरों की दुकानदारी चलाते हैं, अब अपने बढ़ते भंडार को देख कर खुश भी हैं और चिंतित भी कि कहीं दूसरी पार्टी सत्ता में आ गई तो उस पर नई सरकार की नजर न पड़ जाए. जो मंगलसूत्र औरतों के गलों से निकल कर मंदिरों में पहुंच चुके हैं उन का आकलन तो किया ही नहीं जा सकता.
तिरुपति मंदिर के कुछ आंकड़े सार्वजनिक हुए. इन के अनुसार, मुख्य मंदिर ट्रस्ट के पास 2023-2024 के वर्ष में 13.287 करोड़ रुपए की फिक्स्ड डिपौजिट है. यही नहीं, उस के सहयोगी ट्रस्टों के पास 5,529 करोड़ रुपए की फिक्स्ड डिपौजिट है. मोदीकाल में यह रकम 970 करोड़ से 800 करोड़ सालाना बढ़ रही है.
तिरुपति मंदिर के पास 800 चल संपत्तियां भी हैं. उन का मूल्य भी बेतहाशा बढ़ा है और अब कुल सकल संपत्ति 2.25 लाख करोड़ रुपए हो गई है. यह बात सिर्फ एक मंदिर की हो रही है.
देश में 5 से 20 लाख तक मंदिर गिने जाते हैं जिन में लाखों सरकारी जमीनें घेर कर बनाए गए हैं. यह संपत्ति है जिसे लूटा जा सकता है. हमारा मौखिक इतिहास इसी संपत्ति को लूटने आए मंगोलों, तुर्की, अफगानों, ग्रीकों, हूण्णों और मुगलों की बात करता है जिसे लूटने ये लोग आते रहे. यह जनता का पैसा तो था ही नहीं, जनता से लूटा जा चुका था. नरेंद्र मोदी ने अच्छा किया कि माताओं और बहनों को अपने गहनों और मंगलसूत्रों की ओर ध्यान दिलाया क्योंकि आज सनातन धर्म जब फिर से शक्तिशाली हो रहा है तो उस की नजर आम लोगों की इसी संपत्ति पर है.
लोगों को खतरा कांग्रेसी मैनिफैस्टो से नहीं, भगवा इरादे से होना चाहिए. कांग्रेस यह तब करेगी जब सत्ता में आएगी और उस की ऐसी कहीं मंशा माइक्रोस्कोप से देखने पर भी मैनिफैस्टो में नहीं मिलती है पर भगवा मैनिफैस्टो तो सभी तरह विदेशियों के शासनों में भी चलता रहा है. और विदेशी शासनों के दौरान भी लोग अपनी संपत्तियां जम कर मंदिरों में चढ़ाते रहे हैं. जो लूट विदेशी शासक जनता से कर रहे थे उस से कई गुना लूट तो मंदिरों की होती रही है.
घटती वोटिंग के पीछे देश के आम चुनाव में देशवासियों की जो रुचि बढ़ रही थी, अचानक घटने लगी है और पहले 3 चरणों में घटा मतदान एक चिंता का विषय बन गया है. यह सिर्फ गरमी की वजह से हुआ, यह बहाना नहीं चल सकता क्योंकि पिछले कई चुनाव इसी तरह की गरमी में ही हुए हैं और लोग उत्साह से मतदान में भाग लेते रहे हैं. यह एक और ही ट्रैंड की निशानी है जिसे देश की सरकार के प्रति गुस्सा ही कहा जा सकता है.
लोगों को लगने लगा है कि उन के वोटों से कुछ नहीं होने वाला और जो भी चुन कर आएगा वह दूध का धुला तो दूर, काले कोलतार से पुता होगा. 2014 में लोगों ने जम कर उत्साह से वोट दिया क्योंकि एक ओर कोयला और 2जी घोटालों के ?ाठे आरोपों से घिरी सरकार को हटाना था तो दूसरी ओर धर्म की स्थापना करने, अच्छे दिनों और भ्रष्टाचारमुक्त सरकार को लाने का मौका मिल रहा था.
देश की सत्ता पर काबिज भाजपा की सरकार ने विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर वोटरों को जता दिया कि उन के वोट से जीते नेता और उन की राज्य सरकारें व देश की ज्यादातर अदालतें उस के चंगुल में हैं यानी सरकार काम करे या न करे, उस का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता. ऐसे में फिर मतदाताओं के मतदान करने का क्या मतलब, ऐसा सोचा जाना स्वाभाविक है.
सरकार के गठन में जहां भी वोट उत्साह से पड़ते हैं या जब भी भरभर कर वोटों से सरकारें बनती हैं, कुछ चमत्कार होते हैं, ऐसा नहीं है. हां, लोगों को बस यह लगता है कि सरकार उन की सुन तो रही है. अब तो यह साफ हो चुका है कि वोट, आवाज, कोर्ट, अर्जी का कोई मतलब नहीं रह गया. सरकार हाथी नहीं, डायनासोर है, बड़ा बुलडोजर है जो अपनी मरजी से चलेगी और जो सामने आएगा, उसे कुचल देगी. उस के भरोसे कोई कल्याण नहीं होने वाला.
अगर चुनावों के अन्य चरणों में भी यही हुआ तो साफ हो जाएगा कि देश में चुनावी लोकतंत्र का भाव खत्म होने वाला है और पौराणिक काल लौटेगा जिस में ऋषिमुनियों की चलेगी क्योंकि उन्हें भगवानों ने वरदान दिया और वे दुर्वासाओं की तरह सब को धमकाते रहेंगे. जनता का काम तो दान करना रहेगा चाहे वह वोट का दान हो, टैक्स का दान हो, मंदिरों में मंगलसूत्रों का दान हो या किसी के चरणों में देह का दान हो.