जम्मू कश्मीर में नाराज कश्मीरियों के पत्थरमार अभियान से बचाव के लिए भारतीय सेना ने एक अजीब प्रयोग किया जो बुरी तरह उल्टा पड़ गया. सेना ने एक कश्मीरी युवक को अपनी जीप के आगे बांध दिया और अपनी एक आवश्यक गश्त बिना पत्थरमारों के प्रहार के पूरी कर ली. पर आज के जमाने में हरेक के हाथ में स्मार्टफोन है जिस के चलते सेना की यह तरकीब जल्दी ही दुनियाभर में फैल गई. सेना द्वारा मानव कवच के इस्तेमाल पर खूब हल्ला मच रहा है.

कश्मीर की गुत्थी लगातार उलझ रही है. यह उमीद की गई थी कि भारतीय जनता पार्टी, जो कश्मीर में सख्त कदमों की हिमायती रही है, कश्मीरी युवाओं को सही रास्ते पर ले आएगी. लेकिन महबूबा मुफ्ती के साथ उस की बनाई गई सरकार बुरी तरह फिसड्डी रही है. इस बार वहां उपचुनाव में 3 फीसदी वोटिंग के रिकौर्ड तय किए गए. ऐसे माहौल में मानव कवच ने चिंगारियों पर पैट्रोल छिड़कने का काम किया है.

कश्मीर घाटी के युवा अब बंदूकों और बंदूकों से ही नहीं, पत्थरों से भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. सेना जवाब में क्या करें, उस की समझ नहीं आ रहा. ये पत्थर फेंकने वाले 12-15 साल के बच्चे होते हैं और उन पर गोलियां चलाना आसान नहीं है.

जो लोग 65-70 साल से कश्मीर के मामले को बिगाड़ने का दोष कांग्रेस को देते रहे हैं उन को अब समझ नहीं आ रहा है कि क्या प्रतिक्रिया करें और मानव कवच को सही ठहराएं या नहीं.

मानव कवच विद्रोहियों द्वारा दुनियाभर में इस्तेमाल किया जाता है. अमेरिका में बहुत से अकेले उग्रवादियों और सिरफिरे हत्यारों ने मानव कवच के सहारे ही अपना बचाव किया है. यह एक पुराना तरीका है जिस का इतिहास में अकसर जिक्र मिलता है. पर आमतौर पर खलनायक, जो कमजोर होते हैं, वे इसे इस्तेमाल करते हैं. भारतीय सेना द्वारा इस का इस्तेमाल शहर की सड़कों पर करना गंभीर आलोचना का विषय बन गया. दुनियाभर के मानव अधिकारों के समर्थक इस पर बेहद खफा हैं. इस से भारत की छवि पर गहरा धब्बा लगा है.

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