सरकार की आलोचना करने का हक हर नागरिक का मौलिक अधिकार है पर धर्म के लबादे में लिपटी भारतीय जनता पार्टी का मत है कि सरकार तो पौराणिक राजाओं के समान है और सरकार की निंदा ईशनिंदा है, इसलिए देशद्रोह का आरोप लगा कर सरकार के पास किसी को भी बंद करने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने कानून की व्याख्या की है कि यह गलत है और असंवैधानिक है. इस से मामले दर्ज होने बंद हो जाएंगे, यह जरूरी नहीं.

मुकदमों को शुरू करने की प्रक्रिया अब बहुत आसान है. कोई भी व्यक्ति पुलिस थाने में जा कर शिकायत कर सकता है कि किसी व्यक्ति के कुछ कहने पर देश या धर्म का अपमान हुआ है और उस की स्वयं की भावना को ठेस पहुंची है. पुलिस को यदि रुचि हुई तो वह तत्काल मामला दर्ज कर उस व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही कर सकती है चाहे वह संपादकप्रकाशक हो, नेता हो, लेखक हो, विचारक हो, प्रोफैसर हो या महज छात्र हो.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जरूर दिया है पर शायद इस का मतलब यह नहीं कि बलिया का थानेदार इस आदेश को माने. उसे नेताजी या पंडितजी या मौलानाजी का आदेश मानना ज्यादा फायदेमंद लगता है. यदि आरोपी ने अपराध नहीं किया है, तो खुदबखुद 4-5 साल तक अदालतों के चक्कर लगा कर छूटने का अधिकार रखता है न.

इस दौरान उसे जेल में रहना पड़े, जमानत पर छूटना पड़े, वकील करने पड़ें, एक शहर से दूसरे शहर में जाना पड़े, इस से न तो शिकायतकर्ता को मतलब है न पुलिस को. 4-5 साल बाद बाइज्जत बरी हो जाने के बावजूद आधे आदमियों की जबान पर कानूनी फैवीकोल लग ही जाता है. वे कानून से नहीं, कानूनी प्रक्रिया के शिकार हैं और सुप्रीम कोर्ट इस का कोई इलाज नहीं कर रहा.

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