पश्चिम एशिया के देशों में कामगारों को नौकरियां मिलना एक अद्भुत सपना रहा है. तेल के ऊंचे दामों ने इन देशों में खूब पैसा बरसाया. उन्हें जब मजदूरों की जरूरत हुई ताकि मकान, सड़कें, फैक्टरियां, व्यवसाय बना सकें तो दुनियाभर से लोग जमा किए गए. अब तेल की मांग घट गई है, क्योंकि आर्थिक प्रगति धीरेधीरे शून्य पर आ गई है. दूसरी तरफ  अमेरिका में शेल गैस का उत्पादन तेजी से बढ़ा, जिस से तेल के दाम आधे रह गए.

नतीजा यह है कि सऊदी अरब और कुवैत जैसे देशों में हजारों मजदूर, जिन में लगभग अनपढ़ व छोटे काम करने वाले ज्यादा हैं, बेकार हो गए हैं. उन को काम देने वाली कंपनियों का दिवाला निकल गया है और उन्होंने बकाया वेतन भी नहीं दिया है. उन मजदूरों में से बहुतों ने भारत में कर्ज ले कर वहां नौकरी पाई थी. अब भारत लौटने पर उन की दुर्गति होगी, यह पक्का है.

भारत सरकार का विदेश मंत्रालय इस बार थोड़ा सक्रिय है और सऊदी अरब में काम करने वाले 1 हजार भारतीयों को मुफ्त में भारत ला भी रहा है. फिलहाल वह वहां उन के खाने का इंतजाम कर रहा है. लेकिन यह दया नहीं है, एक तरह का मुआवजा है, क्योंकि हमारे विदेशी मुद्रा के भंडार में इन लोगों के पैसे ही की भरमार रही है. भारत की चमक के पीछे भारत से बाहर जा कर कमा कर लाने वालों का बहुत योगदान है.

भारतीय मजदूर आज दुनिया के बहुत देशों में छोटे काम कर रहे हैं. उन में से कुछ लौटते हैं, कुछ वहीं बस जाते हैं और उन की अगली पीढ़ी अपने पांवों पर खड़ी हो जाती है. पहली पीढ़ी को हर मुसीबत सहनी पड़ती है. उन्हें न केवल दड़बे टाइप मकानों में रहना पड़ता है, अपनों से बिछुड़ना पड़ता है, बल्कि उन का बहुत पैसा सूदखोर और एजेंट खा भी जाते हैं. जो पैसा वे घर भेजते हैं वह मकान, शादी, कपडे़, बीमारी में खर्च हो जाता है.

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