इस बार के चुनावों में धर्मनिरपेक्षता को ले कर बहुत हल्ला मचाया गया और भारतीय जनता पार्टी व उस के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को मुसलिम विरोधी करार दिया गया. इस विवाद का लाभ भाजपा को यह हुआ कि सवर्ण व गैर सवर्ण जातियों और अमीरों व गरीबों के सवाल दब गए.
देश की समस्या धर्म की इतनी नहीं है जितनी धर्मजनित जाति और उस में भी 3 बड़े टुकड़ों, सवर्ण, पिछड़ों और अछूतों (जिन्हें अब दलित कहा जाने लगा है) की है. अमीरगरीब हर समाज में होते हैं पर हमारे यहां यह बात जन्म से जुड़ी होती है और माना जाता है कि गधे को जितना मरजी धो लो, सजा लो, वह घोड़ा नहीं बन सकता.
आजादी के बाद ही नहीं, पहले भी, अंगरेजों के जमाने में भी, पिछड़ों और अछूतों को अपना उद्धार करने के अपार अवसर मिलते रहे हैं. केवल राजाओं के क्षेत्रों में जाति का हिंदू कानून चलता था पर वहां भी नियुक्त अंगरेज रैजीडैंट नजर रखता था और रायसीना हिल की सरकार को भारतीयों से ज्यादा जाति के सवाल का खयाल रहता था. उन्होंने छिटपुट आरक्षण तो कई दशक पहले देना शुरू भी कर दिया था.
आजादी के बाद पहले 10-15 साल कांगे्रस पर सवर्ण हावी रहे. बाद में वोटों की राजनीति के कारण गैर सवर्ण मुख्यधारा में जुड़ने लगे. वे कांगे्रस में नहीं थे. वे समाजवादी, कम्युनिस्टों, किसानों, मजदूरों की पार्टी में थे. पर पूर्ण सत्ता उन को आबादी के 80 प्रतिशत से ज्यादा होने के बाद भी नहीं मिली.
भारतीय जनसंघ और उस के बाद उस का नया नाम भारतीय जनता पार्टी हमेशा से उस हिंदू संस्कृति का गुणगान करती रही जो सवर्ण और गैर सवर्ण के भेद को ईश्वररचित मानती है. इस बार के चुनावों में भाजपा के इसी वर्ग ने नरेंद्र मोदी के मुखौटे का इस्तेमाल कर के जीत हासिल करने की कोशिश की है पर उस की शिकार पिछड़ी जातियों से सहानुभूति रखने वाली पार्टियां बजाय उस मुद्दे पर गंभीर होने के, हिंदू और इसलाम के मुद्दे पर भटक गईं.
यह भारतीय जनता पार्टी की बड़ी विजय है कि पिछड़ा चेहरा सामने रख कर उस ने एक बार फिर देश में ऊंची जातियों को पूर्ण सत्ता सौंपने का सपना साकार करने का सफल प्रयास कर लिया है. कम से कम हिंदी क्षेत्र में पिछड़ी व अछूत जातियों के नेताओं को भ्रमित करने में वह सफल रही है और उस ने मुख्य मुद्दा धर्म का बना दिया है.
देश का विकास तभी हो सकता है जब कर्मठ हाथों को सम्मान मिले यानी पिछड़ों, अछूतों और मुसलमानों की हाथ से काम करने वाली जातियों को पर्याप्त शिक्षा, बराबरी के अवसर, जरूरत पड़ने पर आरक्षण व आर्थिक सहायता, उन में समाज सुधार आदि किए जाएं. इन चुनावों में भाजपा ने नरेंद्र मोदी के सहारे उस रामराज्य को लाने की कोशिश की है जिस में केवटों, सबरियों, धोबियों, वानरों को धर्म के अनुसार स्थान दिया गया था.
अगर भाजपा जीतती भी है तो वह सपना पूरा कर पाएगी, यह अभी कहना कठिन है क्योंकि भारतीय समाज पौराणिक युग में नहीं है. आज मंदिरों में लगे घंटे चाहे ज्यादा हो गए हों और ज्यादा जोर से बजने लगे हों पर इस का अर्थ यह नहीं है कि समाज फिर वापस चलने लगा है.
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