भाजपा शासित गुजरात के सरकारी स्कूलों का दौरा कर के आम आदमी पार्टी ने वहां के सरकारी स्कूलों की बदहाली का जिक्र किया, बदले में भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों को आड़े हाथों लिया, इस से यह तो हुआ कि मंदिरों की जगह कुछ दिनों के लिए सरकारी स्कूलों पर फोकस तो हुआ. शिक्षा के निजीकरण के नाम पर जिस बुरी तरह से मुफ्तशिक्षा के हक को कुचला गया, वह देश और समाज के लिए खतरनाक है व उस की चिंता किया जाना जरूरी है.

भारतीय जनता पार्टी की सामाजिक सोच ही नहीं, उस के लक्ष्य का एक बड़ा हिस्सा यह है कि शिक्षा कुछ लोगों को मिले और जो शिक्षित हों वे एक खास वर्ग व जाति से आएं जिन का उल्लेख गीता में कृष्ण ने बारबार किया है और जिसे पुराणों में बारबार दोहराया गया है. पहले भी शिक्षा का मतलब निजी शिक्षा थी जिस में ब्राह्मण और श्रत्रियपुत्र किसी गुरु के घर में रह कर शिक्षा पाते थे. वहां आम जना अपने बच्चों को नहीं भेज सकता था. आज उसी युग को वापस लाने की कोशिश में भगवाई भाजपा सरकार को काफी हद तक सफलता मिली है. ऐसी स्थिति में एक उभरते राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी का सवाल उठाना एक सुखद संकेत है.

शिक्षा कुछ तक ही रहे, इस के लिए तरहतरह के प्रपंच किए जा रहे हैं, जैसे पौराणिक व्यवस्था थी कि शिक्षा व पठनपाठन का काम केवल ब्राह्मण करेंगे जो पिछले जन्मों के कर्मों के कारण उच्च कुल में पैदा हुए हैं. आज शिक्षा केवल अमीरों के बच्चों को मिलने का प्रबंध किया जा रहा है जो ऊंचे घरों में पैदा हुए हैं.

हिंदी मीडियम, इंग्लिश मीडियम का शिगूफा छेड़ कर पिछले 50-60 सालों से कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने शिक्षा में 2 वर्ग पैदा कर दिए. अगर ज्ञान इंग्लिश में ही था तो कोई वजह नहीं थी कि 1950 से ही सरकारी स्कूलों में इंग्लिश पढ़ाई जाती. गुरुकुलों में घरेलू भाषा बोलने वालों को संस्कृत ही पढ़ाई जाती थी और मदरसों में अरबी, फारसी. 1950 से ही सरकारी स्कूलों में इंग्लिश की शिक्षा दी जाती और वह अमीरगरीब व सभी जातियों को दी जाती तो कोई कारण नहीं था कि आज देश में हरेक को 2 भाषाओं के ज्ञान पर अधिकार होता.

यह जानबूझ कर किया गया कि शिक्षा पर भरपूर पैसा तो दिया गया पर वह अध्यापकों के लिए बैठेबिठाए सरकारी नौकरियां देने के लिए, पढ़ाई की जिम्मेदारी तो कोचिंग संस्थानों पर डाल दी गई जिन का धंधा जम कर फलफूल रहा है. आम घरों से पिछड़े व दलित पढ़ न पाएं, इसलिए सरकारी स्कूलों को बुरी तरह सडऩे दिया गया. सरकारी स्कूल का काम तो वोटिंग बूथ बनाने के लिए रह गया, हुनरमंद शिक्षित युवा तैयार करना नहीं. आज देश की आधी से ज्यादा आबादी युवा है पर वह न पढऩा जानती न लिखना और न ही उस में कोई खास स्किल है. जो स्किल्ड हैं भी, वे बाहर से विदेशी उस्तादों से पढ़ाई सीख कर आए हैं, जो इंजीनियर हैं वे पेंचकस पकडऩा भी नहीं जानते.

सरकारी स्कूलों का महत्त्व जरूरी है. निजी स्कूल भाग्य, जातिभेद, वर्गभेद, वर्णभेद बनाए रखने के लिए रखने जरूरी भी हों तो भी उन का पाठ्यक्रम, भाषा, माध्यम बिलकुल एकजैसा होना चाहिए. सरकारी स्कूल जनता के पैसे से चल रहे हैं तो वे शिक्षा में ज्यादा बेहतर होने चाहिए. अमीरों के स्कूलों के बच्चों को शान बघारनी है तो वे फिनिशिंग स्कूलों में जाएं जहां मैनर्स सिखाए जाते हैं, पढ़ाया नहीं जाता. आम आदमी पार्टी ने स्कूली शिक्षा को राजनीतिक मुद्दा बना कर राजनीति में रोचकता लाई है जो सराहनीय है.

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