मनमानी धर्म के नाम पर की जाए या पंथ के नाम पर, एक ही बात है. हिंसा, भीड़, आगजनी और हड़ताल के जरिए दूसरे धर्मों के लोगों को डराया, धमकाया जाए या अपने ही धर्म के दूसरे वर्ग को, बात एक ही है.

हिंदू संघों ने पिछले 50 सालों में गौपूजा, राममंदिर, गोधरा कांड आदि को ले कर जो उत्पात मचाया था उस का सही व पूरा सबक राम रहीम, आसाराम व रामपाल के समर्थकों ने सीखा है. राम रहीम पर उसी पंथ की एक भक्तन का बलात्कार किए जाने का आरोप सिद्ध हो गया लेकिन उन के समर्थक इस को मान नहीं रहे.

हिंदू संगठनों ने पाठ पढ़ाया है कि धर्म सर्वोपरि है और जो बात बहुमत कह दे वही सच है. इसलिए, बाबरी मसजिद रामजन्मभूमि पर बनी है, तो बनी है. गोधरा में 59 हिंदू रेल के डब्बे में मरे हैं व उस के लिए सारे गुजराती मुसलमान जिम्मेदार हैं, तो हैं. भारी भीड़ कहती है कि राम रहीम ने बलात्कार नहीं किया तो नहीं किया. और ऊंची जातियों की सरकार व अदालतों का सुबूत इकट्ठा करना दलित बहुल पंथ का अपमान है, तो है.

सत्ता में बैठे लोगों ने ही पढ़ाया है कि आस्था तर्क व तथ्य से ऊंची चीज है. और यही आस्था अपने गुरु राम रहीम को अदालती आतंकवाद से छुड़ाने के लिए पंचकूला, सिरसा, दिल्ली व अन्य जगहों पर भक्तों को जमा करने में काम आई. कानून अपना काम करेगा, इस पर विश्वास कौन कर रहा है क्योंकि जब किसी मांस को गौमांस कह दिया जाए या किसी भी किताब में दिए गए तथ्यों को झुठला कर वर्षों के पड़े झूठ के कीचड़ पर भरोसा कर लिया जाए.

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