घर में आने वाली बहू को बेटे के लिए चुनने और उच्च न्यायालय में जज, मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री चुनने में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. एक मामले में घर की सुखशांति निर्भर रहती है, दूसरे में न्यायव्यवस्था और तीसरे में पूरे देश की शांति व उन्नति. तीनों मामलों में यदि गलत व्यक्ति चुन लिया गया तो समझो जो भी प्रभावित हो रहा है उस का बेड़ा गर्क तय है. उसे दूसरों के सामने नीचा ही नहीं देखना पड़ता, गलत निर्णयों का खमियाजा भी भुगतना पड़ता है जो कई मामलों में जानलेवा भी होता है.

मद्रास उच्च न्यायालय में नियुक्त न्यायाधीश सी एस करनान के व्यवहार पर मद्रास उच्च न्यायालय के जजों को बहुत शिकायत थी और उन्होंने उन का तबादला कोलकाता उच्च न्यायालय में करा दिया. उस पर जस्टिस करनान ने बहुत हंगामा खड़ा कर दिया जो अंतत: उन के रिटायर होने पर ही समाप्त हुआ.

यदि घर में पत्नी का उत्पात शुरू हो जाए तो पति ही नहीं, सासससुर, देवर, दौरानी, ननदें, बच्चे कितने तनाव और कठिनाइयों से जूझते हैं, यह जगजाहिर है. कितनी ही बार पति आत्महत्या कर डालते हैं, बच्चों का कैरियर खराब हो जाता है, सासससुर परेशान हो कर बीमार हो जाते हैं. घर में, छोटा हो या बड़ा, एक घुटन भर जाती है.

पत्नी के चयन के समय और जिस ने उसे खोजा था उस पर सवाल खड़े होने लगते हैं. उस समय जो मन में विचार आते हैं वे इस मामले में हाल के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की निम्न राय, जो उस ने नियुक्ति के मामले में दी बहुत कुछ घरघर पर लागू होती है:

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