Religion : चादर का फटना शुरू होने के बाद नजर आने लगा है. न केवल भारत की विदेश नीति की पोल फटी चादर के छेदों से दिखने लगी है, कश्मीर, लद्दाख, बेरोजगारी, प्रदूषण, दिल्ली जैसे शांत शहर में रंगदारों की खुली गोलीबाजी, नई सड़कों के गड्ढे, ड्रग्स, डंकी व्यापार आदि सब भी दिखने लगे हैं.
पिछले 40 सालों से धर्म का जो खुमार चढ़ा था और जिस की वजह से राम मंदिर बन गया लेकिन बाकी समाज तारतार हो गया है, ऐसा साफ दिखने लगा है. धर्म की नाव पर चढ़ कर जो सरकार दिल्ली में बनी थी उसे झंडों की और प्रतीकों की इतनी फिक्र थी कि उस ने नाव की मरम्मत करने की ही नहीं सोची और उस नाव से नदी के तटबंध तोड़ डाले, किनारों को उजाड़ दिया, पानी को गंदा कर डाला.
धर्म कभी भी कहीं भी निर्माण का काम नहीं करता, जरूरी निर्माण का पैसा और श्रम धर्म के नाम पर लगवाता है. गांव और शहर सड़ने लगते हैं, धर्म की दुकान के बुर्ज ऊंचे होने लगते हैं, चमकने लगते हैं. सड़े शहरों में समाज तारतार होने लगता है.
कश्मीर अब धीरेधीरे फिर आतंकवाद की ओर बढ़ रहा है. पंजाब के खालिस्तानी पंजाब में ही नहीं, दुनियाभर में फैले हुए हैं और जम कर सक्रिय हो रहे हैं और भारत सरकार वहां उन का मुंह बंद करा रही है लेकिन समस्याको सुलझा नहीं पा रही. बेरोजगारी के कारण मुट्ठीभर सरकारी नौकरियों को पाने के लिए जाति, धर्म, उपजाति के झगड़े अभी चाहे कागजों पर ही दिख रहे हों, कब वे सड़कों पर उतर आएंगे, कहा नहीं जा सकता.
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