2 जी स्पैक्ट्रम घोटाले के मामले में सीबीआई के फैसले से एक बात साफ हो गई है कि एक सरकारी संस्था की जांच की रिपोर्ट का मतलब कोई यह न निकाले कि दोषी वास्तव में अपराधी हैं. जयललिता और लालू प्रसाद यादव यदि अदालतों द्वारा अपराधी माने गए तो इसलिए ज्यादा कि उन के वकीलों की सफाई कमजोर थी, न कि मामला वास्तव में गंभीर था.

बिहार-झारखंड के चारा घोटाले में फंसेबंधे और अपराधी घोषित हुए लालू प्रसाद यादव का अपराध अभी पूरी तरह न्यायिक प्रक्रिया से नहीं गुजरा है. सरकारी कामकाज आमतौर पर इस तरह होते हैं कि मंत्री, अफसर और नौकरशाही अपने को बचा कर चलते हैं. अदालतें, खासतौर पर पहली ट्रायल कोर्ट, मामले को किस तरह देखती हैं और अपील में क्या होता है, इस के हजारों नमूने फैसलों की रिपोर्टों में दबे हैं.

सुप्रीम कोर्ट हर साल बीसियों मामलों में ट्रायल कोर्ट द्वारा अपराधी घोषित किए लोगों को अपराधमुक्त करती है क्योंकि बयानों से स्पष्ट हो जाता है कि ट्रायल के समय माहौल कुछ और होता है जब अभियुक्त भी ज्यादा गंभीर नहीं होता. एक बार अपराधी घोषित हो जाने के बाद उसे होश आता है और वह बचाव के उपाय ढूंढ़ता है. लालू प्रसाद यादव का चैप्टर अभी बंद नहीं हुआ है.

लालू प्रसाद यादव दूध के धुले हैं, यह नहीं कहा जा रहा पर यह जरूर है कि देश का सामाजिक गठन इस तरह का है कि अदालतों को जीभर के राजनीतिक स्वार्थ के उपयोग में लाया जाता है.

लालू प्रसाद यादव ने बिहार के विकास में कोई उल्लेखनीय काम किया है, ऐसा नहीं. पर उन के बाद आए नीतीश कुमार अपनी साफसुथरी छवि

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