सरकार अब स्कूलों में 12 की जगह 13 या 14 साल रहने की पौलिसी बना रही है. नए आर्डस के हिसाब से स्कूलों को नर्सरी, लोअर केजी और केजी के बाद पहली क्लास में जाना होगा.

स्कूलों के लिए यह ङ्क्षवडफाल है क्योंकि इस का मतलब है कि वे 2-3 और साल बच्चों के अपने यहां रख सकेंगे और गलियों में खुल रहे छोटेछोटे स्कूलों की जगह रह नहीं जाएगी. यह पढ़ाई का सैंट्रेलाइजेशन है कि हर बच्चा 13-14 साल एक ही स्कूल में पढ़े, एक ही तरह के दोस्त रहें और अगर कोई बुली है तो वह साल दर साल अपनी दादागीरी चालू रख सकें.

बारबार स्कूल बदलना मांबापों के लिए आफत होती है पर हर नया स्कूल एक नई हवा देता है और नए साथी बनते हैं. डाइबॢसटी का पाठ पढऩा स्कूल बदलने का एक अच्छा पाठ होता और बच्चे इस से बहुत कुछ लिखते हैं पर अपनी धुन में सरकारी आदेश मांबाप पर बच्चों को नया न सीखने देने का आदेश दे रहे हैं.

एजुकेशन अब पैसा कमाने को बड़ा जरिया बन गया है. सरकार ने इस में से हाथ खींच लिया है. सरकार का पहले कर लेने का एक बड़ी जस्टी फिकेशन बराबर की सी एक साथ अलग बैकग्राउंडों से आने वाले बच्चों ने सामाजिक ढांचे का लाभ उठाते हुए अमीरों, क्या अमीरों, साधारण, गरीबों, ङ्क्षहदुओं, मुसलिमों, सिखों, ईसाइयों, जातियों के स्कूल बचना आसान कर दिया है और जो बच्चे एक तरह के माहौल में शुरू के 13-14 साल रहेंगे वे पक्का एक ही सोच वाले हो जाएंगे. वे कुछ भी नया नहीं सोच सकेंगे. वे ठहरेे पानी के जोहड़ की तरह होंगे जिस में गंद ज्यादा रहती है, साफ पानी कम.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...