देशभर की कौर्पोरेशनों की बड़ी आय का स्रोत प्रौपर्टी टैक्स होता है जो हर कौर्पोरेशन अपने अनुसार लगाती है. मकान बनाते समय जो पैसे चाहो, बनाने वाला दे देता है. पर हर साल, साल दर साल, उन सपंत्तियों पर टैक्स देना जो कोई पैसा कमा कर नहीं दे रही, एक मुसीबत ही लगती है. हर कौर्पोरेशन के खाते में वर्षों के बकाएवसूली की मोटी रकम पड़ी रहती है. यह रकम उगाहने के लिए समयसमय पर नोटिस, कुर्की, सीलिंग जैसे ऐक्शन लिए जाते हैं. इन से वसूली तो कुछ हो जाती है पर कभी भी यह 100 प्रतिशत नहीं होती और जो होती है वह फूलप्रूफ भी नहीं होती.

सब से बड़ी समस्या यह होती है कि प्रौपर्टी टैक्स किस आधार पर दिया जाए. यह समस्या सदियों से है. इंगलैंड में एक बार घरों में खिड़कियों की गिनती और उन के साइज पर टैक्स लगने लगा था. बड़े मकानों ने बाहर की खिड़कियां बंद कर दीं या छोटी कर दी थीं. आज भी तरहतरह की दरें हैं और तरहतरह की छूटें हैं जो पूरे ढांचे को चरमरा देती हैं. कौर्पोरेशन के चुनावों में जो पार्टी सत्ता में नहीं होती वह किसी तरह की छूट देने का वादा करती है पर जीतने के बाद मुकर जाती है और उस से मुश्किल और बढ़ जाती है.

मकान मालिक अकसर सुविधाओं की कमी का रोना रोते हैं कि पानी का पाइप नहीं डाला, गलियां-सड़कें ठीक नहीं हैं, बिजली के खंबों पर बल्ब नहीं हैं तो प्रौपर्टी टैक्स किस बात का दें. मकान मालिक गिनती में बहुत होते हैं, इसलिए कोई बड़ा कदम उठाना भी आसान नहीं होता. सीलिंग इन में से सब से खतरनाक कदम होता है. जिस प्रौपर्टी में रह रहे हैं, उस में काम कर के रोजीरोटी कमा रहे हैं उसे अगर सील कर दिया जाए तो करदाता आखिर पैसा कहां से जुटाएगा, यह सीधी सी बात आम अफसरों को सम?ा नहीं आती. मकान की कुर्की में चूंकि हजार ?ां?ाट होते हैं, इसलिए कौर्पोरेशनों के अफसर सीलिंग की क्रिया को अपनाते हैं पर यह तो अंडा देने वाली मुरगी को दाना न देने की बात है या कि शायद भूखे रह कर वह ज्यादा अंडे दे देगी.

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