भारतीय जनता पार्टी की योजना तो थी कि मुसलमानों को देशद्रोही और आतंकवादी बता कर हिंदुओं को भगवा झंडे के नीचे ले आया जाए पर उन के अंधभक्तों ने अतिउत्साह में गोसेवा के नाम पर दलितों को उकसा दिया और भगवाइयों का दबा हुआ गुस्सा उभर आया है. सारे देश में दलित उत्पीड़न, जो अब तक सामान्य बात थी, नौनन्यूज थी यानी समाचार बनने लायक न था, अब सुर्खियां बन गया है.

राममंदिर के मामले में भाजपा को खूब वोट मिले पर ये वोट उन पिछड़ों के थे जो सवर्णों जैसे बनने की चाह में भारतीय जनता पार्टी के रथ के घोड़ों की तरह खींच रहे थे. लालकृष्ण आडवाणी, उन श्रेष्ठ सवर्णों में आते हैं या नहीं जिन्हें हिंदू समाज पर राज करने का पौराणिक हक है, एक सवाल है. शायद इसीलिए अटल बिहारी वाजपेयी, जिन का 1999 की जीत में कोई योगदान न था, रथयात्री लालकृष्ण आडवाणी को ढकेल सके थे.

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सकते में हैं कि वे दलित आक्रोश और पिछड़ों में बढ़ते असंतोष का क्या करें. दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु की हारों ने यह तो जता दिया कि देश चाहे कांग्रेसमुक्त बन जाए पर भाजपायुक्त नहीं बन सकता क्योंकि दलितों और पिछड़ों के वोटों पर अब भरोसा नहीं किया जा सकता.

दलितों को एक मूर्ति भीमराव अंबेडकर के रूप में मिल चुकी है जो भारतीय जनता पार्टी के राम, विष्णु, कृष्ण से ज्यादा दिख रही है. और भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक कारणों से एक ही परदे पर राम और अंबेडकर को दिखाना पड़ रहा है, हालांकि यह पुराणों का घोर अपमान है. राजनीति की जरूरत चाहे जो हो पर आम भाजपाई इसे अपनाने को तैयार नहीं है और इसीलिए देशभर में दलित उत्पीड़न की घटनाएं होती हैं. और अब हर घटना को नमकमिर्च लगा कर परोसा जा रहा है.

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