भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के अपने अभूतपूर्व वोटरों को बचाने के लिए जिस दलित पैतरे को अपनाया है वह उस पर भारी पड़ेगा. अपने विरोधियों को मिलाना हमारी हिंदू परंपरा रही है पर विरोधियों को मिलाने के बाद उन्हें हमेशा नीचा स्थान दिया गया और इस्तेमाल कर के छोड़ दिया गया. 2014 में ‘सब का साथ’ का नारा लगा कर दलितों और पिछड़ों को पटाया गया पर फिर छोड़ दिया गया. अब समाजवादी पार्टी से उत्तर प्रदेश में फूलपुर और गोरखपुर सीटों पर हुए लोकसभा उपचुनावों में पटखनी खाने के बाद भाजपा को दलित फिर याद आए हैं और जोरशोर से वह भीमराव अंबेडकर को याद कर रही है हालांकि वह मन से उन की जघन्य विरोधी रही है.

भाजपा जो उलटपलट करती है वह असल में उस की पौराणिक मानसिकता है. अमृत मंथन में देवताओं, जिन्हें भाजपा अपना मानती है, ने समुद्र मथने में असुरों को, जिन्हें भाजपा विदेशी मानती है, मिलाया पर अमृत मिलते ही विष्णु की मोहिनी अवतार के लटकेझटकों से उसे छीन लिया और असुरों को हिस्सा नहीं दिया. यही 2014 के आमचुनाव के बाद सरकार के गठन में किया गया जब सारे मलाईदार मंत्रालय ऊंचों ने अपने पास रख लिए. अब दलित हल्ला मचा रहे हैं तो फिर राम की युद्ध की तैयारी सी की जा रही है और वानरों आदि को फिर फुसलाया जा रहा है. कठिनाई यह है कि अब पौराणिक चालें पूरी तरह हिट नहीं हो रहीं. दलितों को खुश करने के लिए यदि एससी कानून में या आरक्षण प्रक्रिया में कुछ बदलाव लाया गया तो ऊंची सवर्ण जातियां विद्रोह कर जाएंगी. यह न भूलें कि यही जातियां पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा में कम्युनिस्टों तक के साथ जुड़ गई थीं ताकि मजदूरों को लाल झंडे के नीचे पटा कर इस्तेमाल किया जा सके. आज ये जातियां भाजपा में जाने की इच्छुक हैं पर वहां यदि सब मालपुआ दलितों में बंट गया तो फिर उन्हें क्या लाभ होगा?

भारतीय जनता पार्टी में आंतरिक विद्रोह की जो सुगबुगाहट सुनाई दे रही है उस का एक कारण यही है कि पिछले कुछ महीनों से भगवा दुपट्टा अपना रंग छोड़ने लगा है. यह अब मनमरजी करने का पासपोर्ट नहीं रह गया. सवर्ण जातियां यदि तिलक, जनेऊ व भगवा गमछे का लाभ न उठा पाईं तो फिर भाजपा में रहने का उन्हें क्या लाभ होगा? हाल के चुनावों में कुछ ऐसा ही देखने को मिला है. 2 अप्रैल को भारत बंद पर दिखा, उन्नाव व कठुआ में बलात्कारों पर दिखा. यदि भगवा कवच काम का नहीं, तो फिर रामबाण या गांडीव को पाने की लालसा का क्या लाभ? भारतीय जनता पार्टी को ऊंची जातियों पर ही निर्भर रहना होगा क्योंकि उन्हीं की निष्ठा मजबूत है. उन्हें नाराज किया तो कांग्रेसी महल की तरह भाजपा का घर लाक्षागृह बन जाएगा.

भाजपा को जो अंधसमर्थन ऊंची जातियों का मिल रहा है वह दलितों व पिछड़ों का दमन करने की सामाजिक मान्यता को, 21वीं सदी में भी, सही साबित करने के लिए मिल रहा है. इस दमन का न जन्मजात संबंध है न यह उत्पादन के लिए ठीक है. यह पूरे देश और समाज के हाथपैरों में आई सूजन है जिसे हम कम कर नहीं पाते बल्कि पौष्टिकता समझ कर अपनाते फिरते हैं.

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