रिजर्व बैंक ने बैंकों को बचत खाते में न्यूनतम राशि रखने की शर्त को समाप्त करने के  निर्देश दे कर उपभोक्ताओं को भारी राहत दी है. बैंकों में खाते खुलवाने के लिए जबरदस्त प्रचार करने वाले बैंक यह बात आमतौर पर गुप्त ही रखते हैं कि उपभोक्ता को एक न्यूनतम राशि खाते में रखनी होगी. अगर किसी उपभोक्ता के कई बचत खाते हों तो उसे काफी परेशानी होती है कि सभी में न्यूनतम राशि रखी जाए और वह भी कम ब्याज दर पर.
बैंकों का कामकाज धीरेधीरे एकतरफा होता जा रहा है और उपभोक्ताओं की एकएक कर के परेशानियां बढ़ रही हैं. बड़े उद्येगों को हजारों करोड़ के ऋण देने वाले बैंक गृह ऋण, शिक्षा ऋण, सोने के बदले ऋण आदि का धुआंधार प्रचार कर के ग्राहकों को आकर्षित कर लेते हैं पर शुरू में लौलीपौप की ऊपरी परत के बाद उन्हें एकएक कर के लंबे अनुबंधों, नियमों और रिजर्व बैंक के निर्देशों के नाम पर जम कर परेशान करते हैं. 
ग्राहक बैंक को अपना साथी समझे और उस के सहारे अपनी अचानक आई समस्याओं से निबट सके, ऐसा होने की जगह बैंक उन्हें पैसा कमा कर देने वाली मशीन बना डालते हैं.
बैंक मुफ्त में काम नहीं कर सकते, यह पक्का है. पर बैंक केवल उन ग्राहकों के लिए ही नहीं बन सकते जो बैंकरों के दांवपेंच समझते हों. बैंक एक साझेदार हैं जो समाज को स्थिरता देने की जिम्मेदारी भी रखते हों और जनता के आड़े वक्त काम आएं. बचत खाते में कम पैसे होने पर भी बचत खाते के प्रबंध पर बैंक का खर्चा होता है, यह ठीक है पर यह सुविधा तो दोनों के लिए ही है क्योंकि बैंकों के पास जो पैसा जमा होता है वह इन छोटे बचत खातों के माध्यम से ही होता है.
जरूरत तो यह है कि अब रिजर्व बैंक ग्राहकों को दी जाने वाली सारी सेवाओं के नियमों व भत्तों की जांच करे. बैंकों के सैकड़ों नियम ऐसे हैं जो ग्राहकों को परेशान करते हैं और उन का सरलीकरण करना अब आवश्यक हो गया है ताकि बैंक पुलिस वाले न लगें जिन से सुरक्षा नहीं लूट मिलती है.

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