7वें वेतनमान के लागू होने के बाद सरकारी नौकरों को कम से कम 18 हजार रुपए प्रतिमाह और अधिक से अधिक 2 लाख 50 हजार रुपए प्रतिमाह का वेतन मिलेगा. इस वेतनमान के लागू होने से सरकारी नौकरों का वेतन 23.55 फीसदी बढ़ जाएगा. आर्थिक मुद्दों के जानकार संगठनों फिच और सिटी ग्रुप के अनुमान हैं कि 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी का 0.50 फीसदी तक बढ़ सकता है. सरकार के आय और व्यय के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं. इस वेतन वृद्धि के बाद चल रहे वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को 3.5 के भीतर रखना मुश्किल होगा. राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.9 है. इस को हासिल करना मुश्किल होगा. आर्थिक बोझ को दरकिनार कर अगर जनता पर पड़ने वाले बोझ को देखा जाए तो जबजब सरकारी कर्मचारियों का वेतनमान बढ़ा है महंगाई बढ़ी है. 7वें वेतनमान से 1.02 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ देश पर पड़ेगा. केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय का दावा है कि सरकार को पहले से अनुमान था कि 7वें वेतनमान के लागू होने का असर पडे़गा इसलिए वह पहले से ही सचेत था. सरकार के सामने आगे कोई जोखिम आने वाला नहीं है. इस के विपरीत रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था सार्वजनिक और निजी निवेश में गिरावट के दौर से गुजर रही है. इस से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है. ऐसे में 7वें वेतनमान के रूप में अतिरिक्त बोझ देश के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर रहा है. देश के सामने जीडीपी ग्रोथ को बनाए रखना आसान नहीं होगा. देसी रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का मानना है कि 7वें वेतनमान के लागू होने के बाद उपभोक्ता मांग बढ़ेगी. उपभोक्ता मांग सरकारी कर्मचारियों के लिए सहज हो सकती है पर बाकी जनता बढ़ती महंगाई के बोझ के नीचे दब जाएगी.

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