उत्तर प्रदेश के पुलिस मुख्यालय यानि डीजीपी कार्यालय में उत्तर प्रदेश के डीजीपी जावीद अहमद खडे हुये थे.उनके बगल डीजीपी के सहायक भी थे. ऐसे में पीछे से ‘टेजर गन’ चलती है.डीजीपी सामने की ओर गिरते इसके पहले पास खड़े लोगों ने संभाल लिया.अचेत हो गये डीजीपी कुछ देर में होश में आ गये. अपने इस कदम से अपने मातहतों को एक शिक्षा दे गये कि दूसरो को वहीं कहो जो खुद कर सके.
उत्तर प्रदेश सरकार ‘टेजर गन’ को पुलिस विभाग को देना चाहती है. जिससे उपद्रव के समय आसानी से उन पर काबू पाया जा सके. सुरक्षा उपकरणों का सप्लाई करने वाली कपंनी ने ‘टेजर गन’ का डेमो पुलिस विभाग को दिखाने का काम किया. डीजीपी आफिस में जब इस गन का ट्रायल होना था तो बहुत सारे अफसर और पुलिस के जवान वहां मौजूद थे. ट्रायल के लिये किसी जवान को आगे आने कहा गया तो लोग हिचकने लगे. ऐसे में उत्तर प्रदेश के डीजीपी जावीद अहमद खुद ‘टेजर गन’ के ट्रायल के लिये सामने आये. डीजीपी के सहायक संजय सिंघल और एक अन्य ने डीजीपी को पकड़ लिया तब पीछे से ‘टेजर गन’ से गोली चलाई गई. तेज झटके गोली लगने से डीजीपी अचेत होने लगे तो उनको जमीन पर लिटा दिया गया. कुछ समय में वह फिर नार्मल हो गये.
नासा के रिसर्चर जैक कोवर ने 1969 में टेजर गन बनाने की योजना शुरू की थी. तब से अब तक इसमें तमाम तरह के सुधार किये गये. इसको बनाने का मकसद यह था कि बिना जान जाये दूसरे को अपने कब्जे में किया जा सके. टेजर को कनडक्टेड इलेक्ट्रिकल वेपन के रूप में जाना जाता है. यह इलेक्ट्रि शौक वेपन होता है.इसमें 2 इलेक्ट्रोड होते है.एक कंडक्टर के जरीये मेन यूनिट से जुडे रहते है.जब यह किसी के शरीर से टकराते है तो तेज कंरट पैदा होता है.इससे गोली लगने वाले का मांसपेशियों से नियंत्रण छूट जाता है.शरीर न्यूरों मसक्यूलर की दशा में पहुंच जाता है.गोली लगने वाले को कोई चोट नहीं लगती पर वह अचेत सा हो जाता है.ऐसे में उसको काबू में करना सरल हो जाता है.