देश के लाखों थानों की तरह मैं भी एक थाना हूं, थाना कटारा हिल्स भोपाल. दिनरात हैरानपरेशान पीडि़तों और मामूली से ले कर जरायमपेशा खूंखार मुजरिमों से मैं रूबरू होता रहता हूं. लेकिन बीती 6 दिसंबर की दोपहर कोई 2 बजे मैं भी चौंक उठा था क्योंकि अपनी तरह का यह अनूठा मामला था, जिस में मुलजिमों को पुलिस वाले नाटकीय तरीके से गिरफ्तार कर पकड़ कर या घसीट कर गालीगुफ्तार करते हुए नहीं लाए थे बल्कि उन्होंने खुद थाने आ कर आत्मसमर्पण कर दिया था.

शायद उन्हें एहसास हो गया था कि अब बच पाना मुश्किल है. हालांकि संभावना इस बात की ज्यादा है कि उन्हें अपने किए का पछतावा और गिल्ट महसूस होने लगा था.

वे दोनों एक बड़ी सी कत्थई रंग की कार से उतरे थे, जिस से यह तो समझ आ रहा था कि दोनों कोई उठाईगीरे नहीं, बल्कि शरीफ और सभ्य समाज का हिस्सा हैं.

पहली नजर में देखने पर दोनों पतिपत्नी लग रहे थे, जिन के चेहरे पर इस गुलाबी ठंड में भी पसीना चुहचुहा रहा था. उन के हावभाव साफसाफ चुगली कर रहे थे कि जिंदगी में पहली बार उन्होंने किसी थाने में पांव रखा है. एक अधेड़ था तो दूसरी जवान दिख रही भरेपूरे बदन की मालकिन महिला बेइंतहा खूबसूरत थी. उस के साथ आया व्यक्ति भी कम स्मार्ट नहीं लग रहा था.

दोनों की उम्र 35-40 के करीब थी. गाड़ी सलीके से पार्क कर दोनों आहिस्ता से चल कर थाने के मेन गेट पर आ गए.

शरीफ शहरी लोगों का यूं थाने आना कोई नई बात नहीं है जो आमतौर पर छोटीमोटी वारदातों के शिकार होते हैं. लेकिन यहां मामला एकदम उलट था. महिला सधे कदमों से मौजूद ड्यूटी अफसर के पास पहुंची और बिना किसी भूमिका के बोली, ‘‘मेरा नाम संगीता मीणा है और यह मेरे प्रेमी आशीष पांडे हैं.’’

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