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सूचना पा कर थानेदार बृजेश शुक्ल पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. रागिनी की हत्या की सूचना मिलते ही गांव वाले और जितेंद्र दूबे के जानने वाले अस्पताल पहुंचने लगे. उन का गुस्सा पुलिस वालों पर निकल रहा था. वे पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे.

स्थिति को संभाल पाना पुलिस वालों के लिए मुश्किल हो रहा था. जैसेतैसे स्थिति पर काबू पाया जा सका. भीड़ को अलग कर के पुलिस ने कानूनी काररवाई शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने लाश का मुआयना किया. हत्यारों ने रागिनी के गले पर चाकू से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा था.

थानेदार शुक्ल ने शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. उस के बाद एकमात्र चश्मदीद गवाह सिया से हत्यारों के बारे में पूछताछ की. सिया हत्यारों को पहचाती थी. उस ने थानेदार को उन के बारे में सब कुछ बता दिया.

हत्यारे बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस, भतीजे सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव थे. चाकू से वार प्रिंस ने किया था और उस की मदद सोनू, नीरज और दीपू ने की थी.

सिया ने जो बयान पुलिस को दिया उस के अनुसार मामला कुछ इस तरह था. प्रधान का बेटा प्रिंस सालों से रागिनी को तंग कर रहा था. वह रागिनी से तथाकथित एकतरफा प्रेम करता था, लेकिन रागिनी उसे पसंद नहीं करती थी. रागिनी ने प्रिंस की हरकतों पर कोई तवज्जो नहीं दी, तो वह ओछी हरकतों पर उतर आया. वह रागिनी को रास्ते में आतेजाते छेड़ने लगा.

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