पूरी कालोनी शोर के चलते परेशान हो गई थी. कालोनी में एक सरकारी जमीन का टुकड़ा था. शर्माजी को उस पर कब्जा करना था. उन के मकान से लगालगाया वह टुकड़ा था. उन्होंने थोड़ी सी ईंटें और सीमेंट डलवा कर मंदिर बनवा लिया.
आनेजाने वालों को दिक्कत हो रही थी. लेकिन किसी के बाप की हिम्मत जो भगवान के मंदिर के खिलाफ बोल दे. शर्माजी ने उसी मंदिर से लग कर एक दुकान खोल ली जहां मोटा पेट लिए वे सेठजी बन कर बैठ गए थे. लेकिन अभी उन का मन भरा नहीं था. उन्होंने विचार किया- भगवानजी तो स्वर्ग में रहते हैं, सो उन भगवानजी का ट्रांसफर एकमंजिला बना कर ऊपर कर दें और नीचे पूरा एक हौल निकल आएगा जिस में काफी जगह निकलेगी. उस का गोदाम के तौर पर उपयोग हो जाएगा.
जयपुर से एक पत्थर लाया गया. फिर एकमंजिला ऊंचा मंदिर निर्माण कर के नीचे वाले हिस्से पर शर्माजी ने दुकान और गोदाम निकाल लिया. 5-6 महीने बाद आधी दुकान किराए पर दे कर वे चांदी काटने लगे. लेकिन शर्माजी पूजापाठ करें या दुकानदारी-वे कुछ निर्णय नहीं कर पा रहे थे. इधर कालोनी वाले ईर्ष्या कर रहे थे, शिकायतें भी हो रही थीं. अभी दुकानों की लागत निकली नहीं थी और यदि यह अवैध कब्जा हट गया तो लाखों का नुकसान हो जाएगा. उन्होंने तरकीब भिड़ाई और आननफानन अपने गांव से एक अनाथ प्रौढ़ को बाबा बनवा कर बुलवा लिया. उस बाबा का प्रचारप्रसार कालोनी में हो जाए, इसलिए उन्होंने ध्वनि विस्तारक यंत्र लगा कर धार्मिक दोहों का वाचन रखवा दिया था.
रातदिन चलने वाले इस पाठ का शोर इतना अधिक होता था कि कालोनी में सोने वाले जाग जाए और जागने वाले कालोनी छोड़ कर भाग जाए. लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई भगवानजी के खिलाफ आवाज उठाए. शानदार तरीके से शर्माजी ने दुकानदारी जमा ली थी जिस के परिणामस्वरूप मंदिर का चढ़ावा, दुकान का किराया, किराने का फायदा मिला कर शर्माजी धन कूट रहे थे. कालोनी या उस में रहवासी जाए भाड़ में, उन्हें उस से कोई मतलब नहीं था.
इस बीच, शर्माजी ने अपने पुजारी महाराज के चमत्कारों का प्रचार कर दिया था. हवा से भभूत निकालना, पानी में दीपक जलाना, जबान पर कपूर को जलाना…एकदो नहीं पूरे आधा दर्जन से अधिक चमत्कारों को बतलाने के परिणामस्वरूप मंदिर में भीड़ बढ़ गई. चढ़ावा भी बढ़ गया. दुकान की बिक्री भी बढ़ गई. शर्माजी बहुत खुश थे. एक पसेरी उन का वजन और बढ़ गया था. जब दुकान चल निकली तो चमत्कारों को बढ़ाना तथा भक्तिरस में डूबा बताना भी कर्तव्य हो गया.
शर्माजी का मंदिर ही उस जह का नाम हो गया था और भीड़ बढ़ती जा रही थी. लोग अंधश्रद्घा में डूबे रहे. कोई प्रश्न खड़ा ही नहीं करे, इस के लिए शर्माजी ने भजनमंडल, पाठों का आयोजन पूरे डीजे साउंड के साथ शुरू कर दिया ताकि पूरी कालोनी में आवाज जाए. मैं ने सोचा कि अब कालोनी का मकान बेच कर चला जाऊं. सो, मैं ग्राहक खोजने लगा. जिस भी ग्राहक को मेरे घर बेचने का कारण पता चलता, वह मुझे अधर्मी कह कर मकान खरीदने से मना कर देता. मैं बहुत परेशान था.
तब ही हमारी एकमात्र सासूजी अचानक आ गईं. सुबहसुबह का समय था. इतना शोर था कि पक्षी भी कोलाहल करना भूल कर पेड़ छोड़ कर उड़ गए थे. सासूजी ने घर में प्रवेश किया और हमारी एकमात्र धर्मपत्नी का चेहरा देखा तो दंग हो गईं. दरअसल, वह पूरे एक महीने से शोर के चलते सो नहीं पाई थी. मेरे सिर के रहेसहे बाल भी उड़ गए थे और सिर खेल का मैदान हो गया था. सासूजी बहुत दुखी हुईं. यात्रा की थकान के चलते आराम करना चाहा, लेकिन दरवाजेखिड़की बंद कर लेने के बाद भी वे शोर से मुक्ति नहीं पा सकीं और सो नहीं पाईं. दोपहर वे कुछ नाराज हो कर खाने की टेबल पर आईं और बेटी से कह उठीं, मैं लौट कर जा रही हूं.
हमारी पत्नीजी ने दुखी हो कर कहा, ‘मम्मीजी, आप के बुद्धि के चर्चे विदेशों में हैं और आप अगर ऐसी स्थिति में हमें छोड़ कर चली जाएंगी तो आखिर हमारा क्या होगा? उपाय करो, मम्मीजी. हम ने भी हाथ जोड़ लिए, प्लीज सासूजी, कुछ विचार तो करो, आखिर हमारे परिवार का ही नहीं, पूरी कालोनी वालों का सवाल है.’
‘ठीक है,’ कुछ सोचती हुईं सासूजी ने कहा.
हम तो खुशी से गुब्बारे की तरह फूल गए. जानते थे कि प्रत्येक स्थिति में सासूजी ही सब को कंट्रोल कर लेंगी. शाम को भगवे कपड़े पहन कर सासूजी अपनी पूर्व परिचित कालोनी की सहेलियों के साथ मंदिर में दर्शन करने गईं. प्रसाद चढ़ाया, चंदा दिया और हाथ जोड़ कर प्रसाद लिया और अपनी सहेलियों के साथ लौट आईं. अगली सुबह हम सो कर भी नहीं उठे थे कि सासूजी सहेलियों के साथ मंदिर चली गईं जहां भयानक ध्वनिप्रदूषण हो रहा था. उन्होंने तत्काल प्रौढ़ महाराज के हाथों में 500 रुपए का नोट रखा.
महाराज तो दंग रह गया कि आखिर इतना चंदा उसे ही क्यों दिया गया. उस ने खुश हो कर प्रश्न किया, ‘‘मैडमजी, बताइए यह 500 रुपए का चंदा मुझे क्यों दिया जा रहा है?’’
सासूजी की सहेली ने कमान संभाली और कहा, ‘‘पंडितजी, ये 500 रुपए तो कम हैं, इन की इच्छा तो 5,000 रुपए देने की थी.’’
‘‘आखिर क्यों भाई? ऐसी क्या बात हो गई थी?’’
‘‘बात ही कुछ ऐसी थी. इन के पेट में पूरे 3 वर्षों से दर्द था, कल आप का प्रसाद ले गईं…सहेली अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाई कि पंडित ने कहा, ‘‘ओह, वो खा कर ये ठीक हो गईं?’’
‘‘नहीं जी.’’
‘‘फिर क्या बात हो गई?’’
‘‘पंडितजी, उस प्रसाद में आप की दाढ़ी का एक बाल था. मैडमजी ने सोचा प्रसाद में बाल आया है, निश्चितरूप से इस का कोई महत्त्व तो होगा. बस, उन्होंने उस बाल को अपने पेट में बांध दिया और देखतेदेखते पेट का दर्द गायब हो गया.’’
‘‘धन्य हो पंडितजी,’’ सब सहेलियों ने समवेत स्वर में कहा.
‘‘ऐसे बाल मैं विशेष लोगों को ही देता हूं, जिस को सौ प्रतिशत लाभ देना होता है,’’ पंडित ने आत्मप्रशंसा से भर कर कहा.
‘‘हम धन्य हो गए,’’ कह कर सब सहेलियों ने चरणस्पर्श किए और चली आईं.
बस फिर क्या था-एक ने दूसरे से, दूसरे ने तीसरी से पूरी बात पूरी कालोनी में 1 घंटे में फैला दी गई. लगभग 9 बजे तक वहां एक हजार लोगों की भीड़ जमा हो गई जो पंडितजी से सौ प्रतिशत लाभ लेना चाहते थे. मरता क्या न करता. पंडितजी ने एकएक व्यक्ति से दाढ़ी का बाल नुचवाया, सिर टकला हो गया तो जो श्रद्धालु (ग्राहक) थे उन्होंने सिर के बाल नोचने शुरू कर दिए और देखतेदेखते बिना भौंह, बिना पलकों के, टकले, दाढ़ीविहीन पंडित भूत जैसे लगने लगे. पीड़ा से बिलबिला रहे थे.
अभी भीड़ और बढ़ गई थी जो उन की टांगों व बगलों तक के केशलोचन करने के लिए आमादा थी. शर्माजी 11 बजे तक बिजनैस करते रहे. भारी ग्राहकी से वे खुश थे. लेकिन जब ज्ञात हुआ कि गांव से लाया पंडित पीछे के दरवाजे से भागने की कोशिश कर रहा है तो वे उस की छाती पर आ कर डट गए. सैकड़ों लोग उन के सिर पर बाल उगने की प्रतीक्षा में नंबर लगा कर बैठ गए थे. पंडितजी शौचक्रिया के नाम से जो बाहर गए तो फिर दोबारा लौट कर नहीं आए. 2 दिनों में ही शर्माजी का मंदिर श्मशान की तरह सुनसान हो गया था.
जब कोई नहीं रहा तो ग्राहकों ने आना बंद कर दिया. ग्राहक नहीं तो ध्वनि विस्तारक यंत्र बंद हो गया. जब शोर बंद हो गया तो भीड़ लापता हो गई. चढ़ावा खत्म हो गया. मंदिर के देवता एक दिन चोर के हाथों चोरी हो गए.
देखतेदेखते शर्माजी की दुकानदारी पूरी तरह से खत्म हो गई. शर्माजी आजकल हाथठेले पर सब्जी बेच रहे हैं और हमारी सासूजी उन से सब्जी खरीद कर मनपसंद खाना पकवा कर खा रही हैं. है न हमारी सासूजी बुद्धिमान? हम तो यही कामना करते हैं कि सब को ऐसी सास मिले.