सच्ची और कड़वी बात कहने के लिए जितने इंच का मुंह चाहिए वह जिन गिनेचुने नेताओं के पास बचा है, लालू यादव उन के मुखिया ही माने जाएंगे. लखनऊ में सपा के रजत जयंती समारोह में लालू प्रसाद यादव की भूमिका बेहद संक्षिप्त थी जिसे उन्होंने यह कहते विस्तृत कर दिया कि हम यादवों से कोई नहीं लड़ता तो हम आपस में ही लड़ लेते हैं और फिर एक हो जाते हैं. द्वापर युग सरीखी बात कहतेकहते लालू ने आखिरकार भतीजे अखिलेश को चाचा शिवपाल के पैरों में झुका ही दिया. इस प्रक्रिया में अपनी जाति पर गर्व और हीनता दोनों ही उन की बातों में नजर आई जिस से बरबस ही भगवद्पुराण का स्मरण हो आया जिस में यादवों के आपसी युद्ध के किस्सेकहानियों की भरमार है.
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