स्वप्न सौसौ सजाए तुम्हारे लिए

दीप घर में जलाए तुम्हारे लिए

गुफ्तगू फूलकलियों से की हर पहर

दो अधर खिलखिलाए तुम्हारे लिए

दर्द भी, प्रीत भी, प्यास भी, आस भी

साथ ले कर आए हैं तुम्हारे लिए

चांदतारे मुझे देख हंसते हैं अब

नाज सब के उठाए तुम्हारे लिए

आ गई मांगने की जो बारी मेरी

जिंदगी मांग लाए तुम्हारे लिए

आंसुओं से लिखी, खुशबुओं में ढली

नज्म, शायर सुनाए तुम्हारे लिए

है यही आरजू, है यही जुस्तजू

हर कोई मुसकराए तुम्हारे लिए.

       - डा. घमंडीलाल अग्रवाल

 

 

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