बात मेरी शादी के कुछ महीने पहले की है. मेरे पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. मेरी मां और पिता बड़ौदा में थे और मैं चेन्नई में. शादी में बहुत पैसा खर्च हो रहा था. पिताजी को चेन्नई ट्रांसफर किए जाने का आदेश मिल गया था, सो उन्हें कोई कर्ज भी नहीं दे रहा था.
मेरे होने वाले पति ने मेरे पिताजी को लोन दिलवा दिया था. पिताजी की चिंता कम हो गई थी. मुझे शादी होने के कई महीनों बाद तक यह बात पता ही नहीं थी. जब मुझे यह बात पता चली तो मेरे मन में पति के प्रति सम्मान और बढ़ गया.

भूमा विजयराघवन, चेन्नई (तमिलनाडु)

मेरा छोटा भाई आयूष असम अभियांत्रिकी महाविद्यालय में प्रथम वर्ष का छात्र है. वह पढ़ाई के प्रति गंभीर रहता है. घर से उस का महाविद्यालय
15 किलोमीटर दूर है. हाल ही में आयोजित किए गए भारत बंद के दिन मैं ने उसे महाविद्यालय जाने से मना किया लेकिन वह नहीं माना और चला गया.
लौटते वक्त उसे कोई साधन नहीं मिला और इतनी दूर पैदल चलना मुश्किल था. तभी उसे सेना के 2 ट्रक दिखे. उस ने सैनिक भाइयों को अपनी समस्या बताई तो उन्होंने उसे घर के पास वाले बस स्टौप पर छोड़ दिया. मेरे देश के सैनिक देश व देशवासियों के प्रति कितने समर्पित हैं, यह सोच कर मैं खुश व संतुष्ट हो जाता हूं.

पीयूष सोमानी, गुवाहाटी (असम)


कुछ समय पहले की बात है. मैं अपनी बेटी के साथ पानीपत से दिल्ली बस से जा रही थी. मैं ने कंडक्टर को टिकट के लिए 500 रुपए दिए. उस के पास खुले पैसे न होने के कारण उस ने टिकट के पीछे लिख दिया कि 370 रुपए बाद में ले लेना.
बस में भीड़ होने के कारण मैं पैसे लेना भूल गई और वह कंडक्टर भी देना भूल गया. दिल्ली आने पर हम उतर गए. थोड़ी देर बाद मुझे याद आया और अपनी गलती का एहसास हुआ. लेकिन मेरे पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं था.
कुछ दिन दिल्ली रुकने के बाद हम लोग वापस पानीपत आ रहे थे. बस में कंडक्टर टिकट के लिए आया. मैं पर्स से पैसे निकालने लगी तो मेरे हाथ में वह पुराना टिकट आ गया जिस के पीछे 370 रुपए लिखे थे, मैं उसे देखने लगी. इतने में कंडक्टर आ गया, शायद उस ने वह पुराना टिकट देख लिया था.
वह बोला, ‘‘बहनजी, 4 दिन पहले आप पानीपत से दिल्ली आई थीं.’’ मेरे ‘हां’ कहने पर उस ने कहा, ‘‘आप के 370 रुपए मेरे पास गलती से रह गए थे. तब से मैं हर रोज बस में आप को पैसे वापस देने के लिए देखता था.’’
आज के समय में ऐसी ईमानदारी देख कर मैं नतमस्तक हो गई.

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