सामाजिक कार्यकर्ताओं के आंदोलनों को हलके में लेने की भूल यूपीए सरकार ने की थी जिस का खमियाजा उसे सत्ता गंवा कर भुगतना भी पड़ा. यही गलती अब नरेंद्र मोदी वाली एनडीए सरकार कर रही है. अन्ना हजारे तो कभीकभार मौका ताड़ते हैं पर मेधा पाटकर तो हमेशा आंदोलन करती रहती हैं. अब मेधा नरेंद्र मोदी से भी खफा हो चली हैं तो तय है इस के दीर्घकालिक नतीजे मौजूदा सरकार के हक में अच्छे नहीं निकलने वाले.
पश्चिम बंगाल में सिंगूर के किसानों को जमीनें लौटाने के फैसले से खुश मेधा नर्मदा जल सत्याग्रह की लड़ाई शिद्दत और मुद्दत से लड़ रही हैं. उन का कहना है कि मोदी सरकार 244 गांवों और एक शहर की हत्या कर रही है. बकौल मेधा सांप्रदायिक हिंसा के इस नए रूप को वे लगातार चुनौती देती रहेंगी.