मैं ने एमबीए में दाखिला लिया तो पिताजी ने मुझे मोबाइल फोन खरीद कर दिया. मैं बहुत खुश थी लेकिन कालेज के होस्टल में किसी ने मेरा मोबाइल चुरा लिया. मैं बहुत रोई. यह बात पिताजी को पता चली तो उन्होंने मुझ से कहा कि मैं चिंतामुक्त हो कर आगे की पढ़ाई करूं. पिताजी की बात मान कर मैं ने अपनी पढ़ाई पूरे मन से की और अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई. पढ़ाई पूरी कर के मुझे नामी कंपनी में नौकरी मिल गई. तब पिताजी ने फिर से मुझे एक मोबाइल दिया और कहा, ‘‘बीती बातों को भूल कर हमेशा तुम्हें अपने उज्जवल भविष्य के बारे में सोचना चाहिए.’’ पिताजी की बातें मेरे जीवनभर की पूंजी बन गईं.   

नीरू श्रीवास्तव

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मैं 12 वर्ष की थी, मेरा छोटा भाई 6 वर्ष का था. एक दिन हम पिताजी के साथ बाहर घूमने गए. हम सब ने होटल में खाना खाया और फिर फिल्म देखने चले गए. पिताजी ने टिकट खिड़की पर टिकट का मूल्य पूछा. टिकट वाले ने कहा, 5 वर्ष से नीचे की उम्र वालों के लिए फ्री और 5 वर्ष से अधिक उम्र वालों के लिए 100 रुपए. पापा ने कहा कि 4 टिकट दे दीजिए, मेरे छोटे बेटे की आयु 6 वर्ष हैं. इस बात पर टिकट वाले ने कहा, ‘‘भाईसाहब, अगर आप मुझे आप के बेटे की आयु 5 वर्ष बताते तो भी मैं मान जाता, आप 100 रुपए बचा सकते थे.’’ इस पर पापा ने कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि आज शायद मैं ये 100 रुपए बचा लेता क्योंकि शायद आप नहीं जानते कि मेरे बेटे की आयु 6 वर्ष है लेकिन अगर आज मैं झूठ बोल कर ये पैसे बचाता तो शायद मेरे बच्चे भी भविष्य में यही करते.’’ पापा की बातें हमें आज भी सच के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देती है.              

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