संपादकीय टिप्पणी ‘चुनावी दौर’ वाकई काबिलेतारीफ है. फटेहाल जिंदगी जीने वाले देश की बहुत बड़ी आबादी का एक हिस्सा इस महंगी चुनावी प्रक्रिया से बहुत ही प्रभावित होता है. आचार संहिता का चाबुक किसी को परेशानी में डाले या न डाले लेकिन रोज कुआं खोद कर रोज पानी पीने वालों के लिए तो यह कर्फ्यू जैसा है. सब कामधाम बंद. हमें इस बारे में विचार कर इस लंबी अवधि वाली चुनावी प्रक्रिया को मात्र 1 या 2 हफ्ते में समाप्त करा लेना चाहिए जो देश के लिए हितकर होगा.
छैल बिहारी शर्मा इंद्र, छाता (उ.प्र.)
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